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स्वयम्भूस्तोत्र-तत्त्वप्रदीपिका है । साधारण प्राणी तृष्णा-नदीको पार नहीं कर सकता है। धीर वीर व्यक्ति ही इसको पार कर सकता है । भोगोंकी आकांक्षाको तृष्णा कहते हैं। भोगोंकी आकांक्षा कभी घटती नहीं है, किन्तु उत्तरोत्तर बढ़ती ही जाती है । तृष्णा इस लोक तथा पर लोक दोनों ही लोकोंमें दुःखोंकी उत्पत्तिका कारण है। संसारी प्राणी भोगाकांक्षाकी पूर्तिके लिए रात-दिन विभिन्न प्रकारके कष्ट उठाता रहता है । विषय भोगोंमें निमग्न होकर वह अपना विवेक भी खो देता है । ऐसी अवस्थामें उसे जो अशुभ कर्मबन्ध होता है उसके कारण उसे पर लोकमें निगोद, नरक, तिर्यंच आदि पर्यायोंमें नाना प्रकारके दुःखोंको भोगना पड़ता है । __ अतः दुःखयोनि और दुरुत्तरा तृष्णा-नदीको निर्दोष विद्यारूप नौकाके द्वारा ही पार किया जा सकता है। निर्दोष विद्याका अर्थ है-सम्यग्ज्ञान । सम्यग्ज्ञानके हो जाने पर भव्य जीव सोचता है कि भोगाकांक्षाकी पूर्ति कभी नहीं हो सकती है और विषयोंके सेवनसे निराकुल सुखकी प्राप्ति भी कभी नहीं हो सकती है । निराकल सुख तो आत्माका स्वभाव है। अतः भोगोंसे चित्तको हटाकर आत्मस्वरूपमें लीन होना चाहिए। तभी निराकुल सुखको प्राप्ति होगी। श्री अर जिनने तृष्णा-नदीको पार करके निराकुल सुख या अनन्त सुखको प्राप्त किया था ।
अन्तकः क्रन्दको तृष्णां जन्मज्वरसखः सदा । स्वामन्तकान्तकं प्राप्य व्यावृत्तः कामकारतः ॥ ८ ॥
सामान्यार्थ-पुनर्जन्म तथा ज्वर आदि रोगोंका मित्र अन्तक (यम) सदा मनुष्योंको रुलानेवाला है। किन्तु यमका अन्त करनेवाले आपको प्राप्त कर यम अपनी इच्छानुसार प्रवृत्तिसे उपरत हुआ है ।
विशेषार्थ-आयु कर्मकी समाप्ति हो जाने पर संसारी जीवकी वर्तमान पर्यायका जो नाश हो जाता है उसे मृत्यु या अन्तक कहते हैं । अन्तक, यम, मृत्य और मरण ये सब पर्यायवाची शब्द हैं । यम पुनर्जन्म तथा ज्वर आदि रोगोंका मित्र है। मृत्यु हो जाने पर यह जीव निश्चितरूपसे नवीन पर्यायको धारण करता है। यही पुनर्जन्म है । मनुष्यादि प्रत्येक पर्यायमें ज्वर, यक्ष्मा आदि नाना प्रकारके रोगोंसे यह जीव सदा पीड़ित रहता है । अतः यमको पुनर्जन्म तथा ज्वरादि रोगोंका मित्र कहा गया है। यह यम स्त्री, पुत्रादि इष्टजनोंकी वर्तमान पर्यायके नाशका कारण होने से मनुष्यको सदा रुलाता रहता है। जब किसी इष्ट जनकी मत्य हो जाती है तब वह करुण क्रन्दन करता है। उसे सदा अपनी मृत्युका भी भय बना रहता है।
श्री अर जिन यमका अन्त करनेवाले हैं और समस्त कर्मोंका क्षय करके अजर, अमर और अविनाशी पदको प्राप्त करनेवाले हैं। यह मनुष्य पर्याय
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