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श्री अर जिन स्तवन
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उनकी अन्तिम पर्याय है। वर्तमान पर्यायके बाद अब उनका पुनर्जन्म नहीं होना है । अतः जो यम संसारी प्राणियोंके प्रति अपनी स्वच्छन्द प्रवृत्ति करता है वही यम श्री अर जिनके प्रति अपनी स्वच्छन्द प्रवृत्तिसे निवृत्त हो गया है । क्योंकि बे अन्तक (यम) का अन्त करनेवाले हैं। लोकमें यमको मृत्युका देवता भी कहा जाता है । श्री अर जिन मृत्युके देवता पर विजय प्राप्त करके अजर-अमर हो गये हैं।
भूषावेषायुवत्यागि विद्यादमदयापरम् । रूपमेव तवाचष्टे धीर दोषविनिग्रहम् ॥ ९॥
सामान्यार्थ-हे धीर ! आभूषणों, वेषों तथा आयुधोंका परित्याग करनेवाला और विद्या, दम तथा दयामें तत्पर आपका रूप ही इस बातको बतलाता है कि आपने दोषोंका पूर्णरूपसे निग्रह किया है।
विशेषार्थ-संसारके समस्त प्राणी राग, द्वेष, मोह आदि दोषोंसे दूषित हैं तथा श्री अर जिन इन दोषोंसे रहित हैं । साधारण मानव तथा कुछ साधु भी अपने शरीरमें रागके कारण कटक, कुण्डल, हार आदि आभूषणोंको धारण कर शारीरिक शोभाको बढ़ाते हैं। वे अहंकारके कारण जटाजट, रक्ताम्बर, पीताम्बर आदि नाना प्रकारके वेष धारण कर अपना महत्त्व प्रकट करते हैं तथा भयके कारण गदा, धनुष, असि आदि शस्त्र धारण कर दूसरोंको आतंकित करते हैं । किन्तु श्री अर जिनने रागरहित होनेके कारण समस्त आभूषणोंका त्याग कर दिया है, अहंकार रहित होनेके कारण समस्त वेषोंका त्याग कर दिया है और भयरहित होनेके कारण समस्त अस्त्र-शस्त्रोंका त्याग कर दिया है। इतना ही नहीं, वे दिगम्बर मुद्राको धारण करके विद्या, दम और दयामें तत्पर हो गये हैं। वे स्वाध्याय, धर्म्यध्यान आदिके द्वारा विद्या (सम्यग्ज्ञान) के विकासमें निरन्तर संलग्न रहते हैं। कषाय और इन्द्रियोंको अपने वशमें रखना दम कहलाता है । मोह रहित होनेके कारण श्री अर जिनने कषायों तथा इन्द्रियों पर पूर्ण नियन्त्रण कर लिया है। ईर्यासमिति, आदान-निक्षेपणसमिति और उत्सर्गसमिति तथा विवेक पूर्वक की गई अन्य क्रियाओंके द्वारा उनमें जीव रक्षाका भाव स्पष्ट मालम पड़ता है। अतः श्री अर जिनके भूषावेषायुधत्यागी तथा विद्यादमदयामें तत्पर ऐसे बाह्यरूप (आकार) को देखकर कोई भी विवेकी मानव सरलतापूर्वक यह समझ सकता है कि श्री अर जिनने राग, द्वेष, मोह आदि दोषों पर पूर्ण विजय प्राप्त कर ली है।
समन्ततोऽनभासां ते परिवेषेण भूयसा । तमो बाह्यमपाकीर्णमध्यात्मं ध्यानतेजसा ॥ १० ॥
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