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स्वयम्भूस्तोत्र-तत्त्वप्रदीपिका
श्री शंभव जिन ने उक्त प्रकारसे कथन करके संसारके प्राणियोंको दुःखका यथार्थ निदान बतला दिया है । दुःखका वास्तविक कारण है - इन्द्रिय जन्य सुख । क्योंकि इससे तृष्णा बढ़ती है और तृष्णाके बढ़नेसे प्राणी सदा संतप्त होकर नाना प्रकार के क्लेशों को भोगता रहता है । अतः इन्द्रिय जन्य सुखमें आसक्तिको छोड़कर अतीन्द्रिय सुखकी प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए । बन्धश्च मोक्षश्च तयोश्च हेतू बद्धश्च मुक्तश्च फलं च मुक्तेः । स्याद्वादिनो नाथ तवैव युक्तं
नैकान्तदष्टस्त्वमतोऽसि शास्ता ॥ ४ ॥
सामान्यार्थ - हे नाथ ! बन्ध और मोक्ष तथा बन्ध और मोक्षके हेतु, बद्ध आत्मा और मुक्त आत्मा तथा मुक्तिका फल, यह सब व्यवस्था अनेकान्तवादी आपके मत में ही युक्ति संगत है, एकान्तवादियों के मत में नहीं । अतः आप ही शास्ता ( उपदेष्टा ) हैं |
विशेषार्थ- - कषाय सहित होनेसे यह जीव जो कर्मके योग्य पुद्गलोंको ग्रहण करता है वह बन्ध है । अर्थात् कार्मण वर्गणाओंका आत्माके प्रदेशोंके साथ संश्लेष-रूप सम्बन्धको प्राप्त होना ही बन्ध है । बन्ध अवस्था में जीवका कर्मोंके साथ एक क्षेत्रावगाहरूप सम्बन्ध हो जाता है । जो आत्मा कषायवान् है वही कर्मोंस बँधता है' । संवर और निर्जराके द्वारा सब कर्मोंका आत्यन्तिक क्षय होनेका नाम मोक्ष है | मोक्ष अवस्थामें आठों कर्मोंका सर्वथा क्षय हो जाता है । बन्धके हेतुओं-का अभाव हो जानेसे अर्थात् संवरसे नवीन कर्मोंका आना रुक जाता है तथा निर्जरासे संचित कर्मोंका विनाश हो जाता है । इस प्रकार आत्मा सर्वथा कर्म M रहित हो जाता है । यही मोक्ष है २ ।
मिथ्यादर्शन, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग ये बन्धके हेतु हैं । मिथ्यादर्शन आदिके द्वारा कर्मोंका आत्माके साथ एक क्षेत्रावगाहरूप सम्बन्ध हो जाता है । इसलिए इनको बन्धका हेतु कहा गया है । सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र ये मोक्षके हेतु हैं । भव्य जीव सम्यग्दर्शनादि तीनोंकी पूर्णता प्राप्त कर लेने पर कर्मबन्धनसे मुक्त हो जाता है । इसलिए इनको मोक्षका हेतु अथवा मोक्षमार्ग कहा गया है । जो आत्मा कर्मसे बँधा हुआ है वह बद्ध आत्मा है और १. सकषायत्वाज्जीवः कर्मणो योग्यान् पुद्गलानादत्ते स बन्धः । - तत्त्वार्थसूत्र ८२ २. बन्धहेत्वभावनिर्जराभ्यां कृत्स्नकर्मविप्रमोक्षो मोक्षः । - तत्त्वार्थसूत्र १०।२ ३. मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगा बन्धहेतवः । - तत्त्वार्थ सूत्र ८ । १ ४. सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः । - तत्त्वार्थ सूत्र १ । १
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