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श्री शम्भव जिन स्तवन
जो आत्मा कर्मबन्धनसे मुक्त हो गया है वह मुक्त आत्मा है । आठ कर्मोंका नाश हो जानेपर मुक्त आत्मामें अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तसुख, अनन्तवीर्य, सूक्ष्मत्व, अवगाहनत्व, अगुरुलघुत्व और अव्याबाघत्व ये आठ गुण प्रकट हो जाते हैं । यही मुक्तिका फल है ।
बन्ध, मोक्षादि की व्यवस्था अनेकान्तवादी श्री शंभव जिनके मतमें ही युक्तिसंगत है। बौद्ध, सांख्य आदि एकान्तवादियोंके मतमें उक्त व्यवस्था किसी भी प्रकारसे नहीं बन सकती है । बौद्ध क्षणिकवादी है । उसके मतमें प्रत्येक पदार्थ प्रतिक्षण नष्ट होता रहता है। बौद्धमतमें जब कोई नित्य आत्मा है ही नहीं तब जिसने पूर्व में बन्ध किया है वही बादमें मुक्त होता है, ऐसी व्यवस्था कैसे बन सकती है। यहाँ तो बन्ध किसी दूसरेने किया और मुक्त कोई दूसरा हो गया । क्योंकि बन्ध करनेवाला आत्मा बन्ध करते ही नष्ट हो जाता है। अतः मोक्ष किसी दूसरेका ही होता है । बन्धके कारणोंका अनुष्ठान किसी दूसरेने किया
और दूसरा कोई बंध गया। इसी प्रकार मुक्तिके कारणोंका अनुष्ठान किसी दूसरेने किया और अन्य कोई मुक्त हो गया। अतः क्षणिकवादी बौद्धोंके यहाँ बन्ध आदि की युक्तिसंगत व्यवस्था नहीं बन सकती है । ___ इसी प्रकार नित्यकान्तवादी सांख्यके मतमें भी बन्ध, मोक्ष आदि की व्यवस्था नहीं बनती है । सांख्यका कहना है कि प्रत्येक पदार्थ कूटस्थ नित्य है । वह सदा एक-सा रहता है, उसमें कुछ भी परिवर्तन नहीं होता है। ऐसी स्थितिमें जो आत्मा बद्ध है वह सदा बद्ध ही रहेगा, वह मुक्त कभी नहीं हो सकेगा। और जो आत्मा मुक्त है वह सदा मुक्त ही रहेगा, उसके बद्ध होनेका कोई प्रश्न ही नहीं है । क्योंकि वह तो सर्वथा एक रूप है । यदि उसमें परिवर्तन स्वीकार किया जाय तो नित्यैकान्तका विरोध उपस्थित होनेके कारण सांख्यके मतमें स्वमतव्याघातका दोष आता है । बौद्ध और सांख्यकी तरह अन्य एकान्तवादियोंके मतमें भी बन्ध, मोक्ष आदि की व्यवस्था नहीं बन सकती है।
इसके विपरीत अनेकान्तवादी शासनमें बन्ध, मोक्ष आदि की व्यवस्थामें कोई असंगति नहीं है । अनेकान्तवादी मतमें आत्मा द्रव्याथिकनयकी दृष्टिसे नित्य है और पर्यायार्थिकनयकी दृष्टिसे अनित्य है । अतः द्रव्याथिकनयकी दृष्टिसे यह बात संगत है कि पूर्व में जिस आत्माने कर्मबन्ध किया था वही बादमें मुक्त होता है । तथा पर्यायाथिकनयकी दृष्टिसे बद्ध और मुक्त पर्यायें भी एक ही आत्मामें संगत हो जाती हैं । जिस आत्माको पहले बद्ध पर्याय थी उसीकी अब मुक्त पर्याय हो गयी। इस प्रकार अनेकान्तवादी शासनमें बन्ध, मोक्ष आदि की सब व्यवस्था युक्तिसंगत सिद्ध होती है। यतः श्री शंभव जिन स्याद्वादी ( अनेकान्तवादी ) है
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