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श्री
वृषभ
जिन स्तवन
स विश्वचक्षुर्वृषभोऽचितः सतां समग्र विद्यात्मवपुर्निरञ्जनः ।
पुनातु चेतो मम नाभिनन्दनो
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जिनो जितक्षुल्लकवादिशासनः ॥ ५ ॥
सामान्यार्थ - जो सर्वदर्शी हैं, सत्पुरुषों द्वारा पूजित हैं, समग्रविद्या (केवलज्ञानरूपी विद्या) ही जिनकी आत्माका स्वरूप है, जो त्रिविध कर्ममलसे रहित हैं, जिन्होंने क्षुल्लक वादियों ( एकान्तवादियों) के शासनको जीत लिया है अथवा जिनका शासन एकान्तवादियों द्वारा नहीं जीता जा सका है, और जो चौदहवें कुलकर नाभिराय के पुत्र हैं, ऐसे श्री वृषभनाथ जिनेन्द्र मेरे चित्तको पवित्र करें ।
विशेषार्थ - श्री वृषभ जिन सर्वदर्शी हैं । क्योंकि उनका केवलज्ञानरूपी नेत्र विश्व के समस्त पदार्थोंको विषय करता है । वे संसारके त्रिकालवर्ती समस्त पदार्थों को उनकी पर्यायों सहित युगपत् जानते हैं । वे शत इन्द्रों तथा अन्य सत्पुरुषों द्वारा वन्दनीय हैं । समस्त पदार्थोंको विषय करनेवाली विद्या (केवलज्ञान) उनकी आत्माका शरीर (स्वरूप) है तथा वे भावकर्म, द्रव्यकर्म और नोकर्मरूप मलसे सर्वथा रहित हैं । इस श्लोक में आगत 'समग्र विद्यात्मवपुः' और 'निरञ्जन' ये दो विशेषण मोक्ष अवस्थाके प्रतीक हैं । चतुर्थ श्लोकमें बतलाया गया है कि श्रीवृषभ "जिन अन्त में मोक्ष स्वामी हो गये । अतः मोक्ष प्राप्त हो जाने पर वे ज्ञानरूप शरीरके धारक और त्रिविध कर्ममल रहित हो जाते हैं । रागद्वेषादि भावकर्म, ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्म और शरीरादि नोकर्म ये त्रिविध कर्ममल हैं । सिद्ध जीव ज्ञानशरीरी और त्रिविध कर्ममल रहित होते हैं । छहढाला में कहा भी है
ज्ञानशरीरी त्रिविध कर्ममल वर्जित सिद्ध महन्ता ।
उनका शासन अनेकान्त शासन कहलाता है । उन्होंने इस अनेकान्त शासनके द्वारा सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसक, बौद्ध आदि एकान्तवादियों के शासनको जीत लिया है । अथवा उक्त एकान्तवादियोंके द्वारा जिनका शासन जीता नहीं जा सका है । इसका कारण यह है कि अनेकान्त शासनके समक्ष एकान्त शासन टिक नहीं सकता है । क्योंकि वस्तुका स्वरूप ही अनेकान्तात्मक है और यह बात अनुभव तथा प्रमाणसे सिद्ध है । वस्तुमें सत्-असत् नित्य-अनित्य आदि परस्पर विरोधी प्रतीत होनेवाले अनेक धर्मयुगल पाये जाते हैं । एकान्त शासन इन अनेक धर्मोसे केवल एक धर्मको ग्रहण कर कहता है-वस्तु सर्वथा नित्य है अथवा सर्वथा अनित्य है । सांख्य कहता है कि वस्तु सर्वथा नित्य है । इसके विपरीत बौद्ध कहता है कि वस्तु सर्वथा क्षणिक है । ऐसा कथन एकान्तवाद है, जो प्रमाणों
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