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( ३ ) श्री शम्भव जिन स्तवन त्वं शम्भवः संभवतर्ष रोगैः संतप्यमानस्य जनस्य लोके ।
आसीरिहाकस्मिक एव वैद्यो
वैद्यो यथाऽनाथरुजां प्रशान्त्यै ॥ १ ॥
सामान्यार्थ - हे शम्भव जिन ! सांसारिक तृष्णारूप रोगोंसे पीड़ित जनों के लिए आप इस लोक में आकस्मिक वैद्यके रूपमें उसी प्रकार प्रकट हुए थे, जिसप्रकार अनाथ लोगोंके रोगोंकी शान्ति के लिए कोई चतुर वैद्य अचानक प्रकट हो जाता है ।
विशेषार्थ -- तृतीय तीर्थंकरका नाम शम्भवनाथ है । इनका शम्भव नाम सार्थक है । 'शम्' का अर्थ है -सुख । जिनके द्वारा भव्य जीवोंको सुख प्राप्त होता है उन्हें शम्भव कहते हैं । संसारो प्राणी नाना प्रकारकी तृष्णाओं से सदा दुःखी रहते हैं । सम्पूर्ण तृष्णाओंकी पूर्ति कभी भी नहीं हो सकती है । संसारके प्राणी केवल तृष्णाओंके कारण ही दुःखी नहीं होते हैं, किन्तु जन्म, जरा, मरण आदि अनेक दुःखोंसे भी संतप्त रहते हैं । यहाँ तृष्णा या जन्म-मरणादि को रोग कहा गया है, क्योंकि ये सब दुःखके कारण होते हैं । संसार के प्राणी जिन रोगोंसे पीड़ित हैं उनकी चिकित्सा के लिए एक ऐसे कुशल वैद्यकी आवश्यकता सदा बनी रहती है जो उनके रोगोंको दूर करनेका उपाय बतला सके ।
यह स्तुतिकार ने बतलाया है कि शम्भवनाथ भगवान् संसारी प्राणियों के दुःखरूप रोगोंकी चिकित्सा के लिए आकस्मिक ( फलनिरपेक्ष ) वैद्यके रूपमें प्रकट हुए थे । श्री शम्भव जिन कोई लौकिक वैद्य नहीं हैं, किन्तु अलौकिक वैद्य हैं, जो संसार दुःखी प्राणियोंकी चिकित्सा किसी फलकी आकांक्षा के बिना निस्पृह भावसे करते हैं । तात्पर्य यह है कि श्री शम्भव जिनके द्वारा बतलाये गये मोक्षमार्ग पर चलकर भव्य जीव अपने दुःखोंका नाश करके संसारके दुःखोंसे मुक्त हो सकते हैं । वर्तमान में भी हम देखते हैं कि कई अनाथ लोग या गरीब लोग तरहतरहके रोगोंसे पीड़ित रहते हैं । किन्तु कभी ऐसा सुयोग आ जाता है कि कोई कुशल वैद्य अचानक उन लोगों के बीचमें आकर धनादिकी आकांक्षा के बिना ही उन असहाय लोगोंको चिकित्सा करके उन्हें रोग मुक्त कर देता है । श्री शम्भव जिन भी ऐसे ही अलौकिक कुशल वैद्य हैं जो संसारके दुःखी प्राणियोंकी चिकित्सा करके उन्हें दुःखोंसे मुक्त कर देते हैं ।
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