________________
श्री अजित जिन स्तवन
और अन्तरंग शत्रुओंपर पूर्ण विजय प्राप्त की थी। अतः उनका अजित नाम सर्वथा सार्थक है।
अद्यापि यस्याजितशासनस्य ___ सतां प्रणेतुः प्रतिमझलार्थम् । प्रगृह्यते नाम परं पवित्रं
स्वसिद्धिकामेन जनेन लोके ॥२॥ सामान्यार्थ-जिनका अनेकान्त शासन एकान्तवादियोंके द्वारा अजेय है और जो सत्पुरुषोंके प्रधान नायक है, ऐसे भगवान् अजितनाथका परम पवित्र नाम आज भी इस लोकमें अपनी इष्टसिद्धिके इच्छुक जनोंके द्वारा प्रत्येक मंगलके लिए सादर ग्रहण किया जाता है ।
विशेषार्थ-भगवान् अजितनाथका शासन अनेकान्त शासन है । यह अनेकान्त शासन किसी भी एकान्तवादीके द्वारा जीता नहीं जा सकता है । इस कारण उनका शासन अजेय है । वे भव्य पुरुषोंके प्रधान नेता हैं। क्योंकि उनके द्वारा प्रतिपादित रत्नत्रयरूप मोक्षमार्गपर चलकर भव्य जीव आत्म कल्याणमें प्रवृत्ति करते हैं । अतः यह कहा जा सकता है कि श्री अजित जिन भव्य जीवों के सन्मार्ग प्रवर्तक थे । ऐसे भगवान् अजितनाथका नाम परम पवित्र है। लोकोत्तर पुरुष अथवा तीर्थकर होनेसे उनके नामका परम पवित्र होना स्वाभाविक है। अतः जो भी व्यक्ति श्रद्धापूर्वक उनके नामका स्मरण या उच्चारण करता है वह पवित्र हो जाता है । उनके नामका जो माहात्म्य उनके समयमें था, वही माहात्म्य असंख्यात काल बीत जाने पर आज भी बना हुआ है। यही कारण है कि इस लोकमें जो भव्य जीव अपने मनोरथ की सिद्धि करना चाहते हैं उनके द्वारा प्रत्येक शुभ कार्यके प्रारम्भमें भगवान् अजितनाथका नाम सादर लिया जाता है ।
यहाँ यह प्रश्न किया जा सकता है कि क्या भगवान् अजितनाथका नाम इष्टसिद्धि करानेमें समर्थ है और यदि ऐसा है तो प्रत्येक व्यक्तिको इष्टसिद्धि उनके नामके उच्चारण या स्मरण मात्र से हो जाना चाहिए। इस प्रश्नका उत्तर यही हो सकता है कि जो भव्य जीव श्रद्धापूर्वक भगवान् अजितनाथके नामका स्मरण करता है वह अवश्य ही पुण्य बन्धके द्वारा अपने मनोरथकी सिद्धि करने में समर्थ होता है। उनका नाम पवित्र और मंगल रूप है। अतः प्रत्येक मंगल या शुभ कार्यकी निर्विघ्न सिद्धिके लिए उनके नामका स्मरण या उच्चारण श्रद्धापूर्वक करना चाहिए।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org