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श्री वृषभ जिन स्तवन
२९.
पुत्रोंका विशाल परिवार उनको स्नेहके बन्धनमें नहीं बाँध सका और वे वैराग्य धारण करनेके प्रति दृढ़ रहे । इन्हीं सब कारणों से उनको समस्त तत्त्ववेत्ताओं में श्रेष्ठ बतलाया गया है ।
विहाय यः सागरवारिवाससं वधूमिवेमां वसुधावधूं सतोम् ।
मुमुक्षुरिक्ष्वाकुकुलादिरात्मवान्
प्रभुः प्रवव्राज सहिष्णुरच्युतः ॥ ३ ॥
सामान्यार्थ – भगवान् ऋषभनाथ मोक्षके अभिलाषी, जितेन्द्रिय, समर्थ, सहनशील, प्रतिज्ञात व्रतसे च्युत न होनेवाले और इक्ष्वाकु कुलके आदि पुरुष थे । उन्होंने पतिव्रता पत्नी की तरह समुद्रपर्यन्त पृथिवीको छोड़कर दीक्षा धारण को थी ।
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विशेषार्थ - ऋषभनाथ मोक्ष प्राप्त करनेके इच्छुक थे । वे स्वपर कल्याण करना चाहते थे । इन्द्रिय और मन को वश में करनेके कारण जितेन्द्रिय थे । समर्थ अथवा स्वतंत्र थे । उनमें भूख प्यास आदि परीषहों अथवा बाघाओं को सहन करने की शक्ति थी तथा गृहीत व्रतोंसे च्युत ( विचलित) होनेवाले नहीं थे । उनके कुल का नाम इक्ष्वाकु था । इक्ष्वाकुकुलके वे आदि पुरुष थे । ऐसे ऋषभनाथने पतिव्रता यशस्वती (नन्दा) और सुनन्दा नामक दो पत्नियों को तो छोड़ा ही, साथ ही सागर का जल ही है वस्त्र जिसका ऐसी स्वभोग्या समुद्रपर्यन्त पृथिवी को भी छोड़ दिया था । जिस प्रकार पत्नी सती ( पतिव्रता ) थी उसी प्रकार पृथिवी भी सती - सुशील पुरुषोंसे आबाद अथवा धन-धान्यसे परिपूर्ण थी । इस प्रकार ऋषभ देवने नन्दा और सुनन्दा इन दो पत्नियों, भरत, बाहुबली आदि एक सौ एक पुत्रों, ब्राह्मी और सुन्दरी इन दो पुत्रियों तथा अनेक पौत्रों आदिके विशाल परिवार को तथा विशाल साम्राज्य को छोड़कर दीक्षा धारण की थी ।
दीक्षा धारण करनेके बाद उनके सहिष्णु और अच्युत विशेषण विशेष सार्थक हुए । कठोर तपस्याके समय उपस्थित होनेवाली भूख प्यास आदि परीषहों तथा अन्य बाधाओं को सहन करने में वे सर्वथा समर्थ रहे । यही कारण है कि वे गृहीत व्रत- नियमों से कभी विचलित नहीं हुए । जबकि उनके साथ दीक्षा लेने वाले बारह हजार राजा भूख, प्यास आदि की बाधा को न सह सकनेके कारण कुछ ही समय में गृहीत व्रतोंसे च्युत होकर भ्रष्ट हो गये थे । उन्होंने केवल स्वामी भक्ति से प्रेरित होकर दीक्षा धारण कर ली थी । किन्तु वे जितेन्द्रिय और सहिष्णु नहीं थे । अतः वे अपनी दीक्षामें स्थिर नहीं रह सके ।
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