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जुगादिबंभा तिय-वण्ण-कत्ता, इंदाहिसित्तो पढमो णरेसो। हा मा धिगंति-दंड-पवत्तओ, वंदामि सम्मं उसहं जिणिंदं ॥3॥
अन्वयार्थ-[जो] (इंदाहिसित्तो) इन्द्रों द्वारा अभिषिक्त (पढमो णरेसो) प्रथम महामंडलीक सम्राट (जुगादिबंभा) युगादि ब्रह्मा (तिय-वण्ण-कत्ता) क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र इन तीन वर्गों के कर्ता (च) और (हा मा धिगंति) हा, मा, धिक् इन तीन (दंड-पवत्तओ) दंडों का प्रवर्तन करने वाले (उसहं जिणिंदं) ऋषभ जिनेन्द्र को मैं (सम्म) सम्यक् रूप से (वंदामि) वन्दन करता हूँ।
अर्थ-जो इन्द्रों द्वारा अभिषिक्त प्रथम महामंडलीक सम्राट युगादि ब्रह्मा, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र इन तीन वर्गों के कर्ता और हा मा धिक् इन तीन दंडों की स्थापना करने वाले हैं, उन विश्वकर्मा स्वरूप प्रथम जिनेन्द्र श्री ऋषभजिन अर्थात् आदिनाथ भगवान को मैं सम्यक् रूप से वन्दन करता हूँ। चौथे ब्राह्मण वर्ण की स्थापना ऋषभदेव के प्रथम पुत्र चक्रवर्ती सम्राट भरत ने की थी। भरत के नाम से ही इस देश का नाम भारत पड़ा है।
गब्भो य जम्मो य तवो य णाणं, कम्मं विघादूण विमोक्खपत्तं। सोम्मं सरूवं च अप्पम्मि लीणं, वंदामि सम्मं उसहं जिणिंदं ॥4॥
अन्वयार्थ-(गब्भो य जम्मो तवो य णाणं) गर्भ जन्म तप और ज्ञान (च) तथा [इनमें जो] (कम्मं विघादूण) कर्मों को नष्ट कर [प्राप्त होने वाला] (विमोक्खं) मोक्ष है [ऐसे इन पाँच कल्याणकों] को (पत्तं) प्राप्त कर (सोम्मं सरूवं) सौम्य स्वरूप (अप्पम्मि लीणं) आत्मा में स्थित हुए (उसहं जिणिंद) ऋषभ जिनेन्द्र को [मैं] (सम्म) सम्यक् रूप से (वंदामि) वन्दन करता हूँ।
अर्थ-गर्भ, जन्म, तप और ज्ञान तथा इनमें जो समस्त कर्मों को नष्ट कर प्राप्त होने वाला प्रधानभूत मोक्ष है, ऐसे इन पाँच कल्याणकों को प्राप्त कर जो आत्मस्वरूप में स्थित हुए हैं, उन प्रथम जिनेन्द्र श्री ऋषभजिन अर्थात् आदिनाथ भगवान को में सम्यक् रूप से वन्दन करता हूँ।
छक्कम्मदायार-कुकम्मघादी, जीवाण तादा पढमेसबंभो। चउम्मुहो विण्हू सिवो गणेसो, वंदामि सम्मं उसहं जिणिंदं ॥5॥
अन्वयार्थ-[राज्यावस्था में प्रजा को] (छक्कम्म दायारो) षट्कर्मों को देने वाले [मुनि अवस्था में] (कुकम्मघादी) कुकर्म का घात करने वाले (जीवाण तादा) जीवों के रक्षक [कैवल्य अवस्था में] (पढमेसो) प्रथमेश (बंभो) ब्रह्मा (चउम्मुहो) चतुर्मुख (सिवो) शिव (विण्हू ) विष्णु (गणेसो) गणेश आदि नामों से पूजित (उसहं जिणिंदं) ऋषभ जिनेन्द्र को [मैं] (सम्म) सम्यक् रूप से (वंदामि) वन्दन करता हूँ।
32 :: सुनील प्राकृत समग्र