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॥ णमोत्थु वीदमोहाणं ॥
उसहजिण-त्थुदी (ऋषभजिन स्तुति, उपजाति-छन्द)
जोणाहिरायस्स सुसेट्ठ-पुत्तो, तिणाणजुत्तो मरुदेवि-णंदो। इक्खागु-वंसी विणिदाइजादो, वंदामि सम्मं उसहं जिणिंदं॥॥
अन्वयार्थ-(जो णाहिरायस्स सुसेट्ठपुत्तो) जो महाराज नाभिराय के श्रेष्ठ सुपुत्र हैं (मरुदेवि णंदो) मरुदेवी माता के नन्दन (तिणाणजुत्तो) [जन्म से ही] तीन ज्ञानयुक्त (इक्खागु वंसी) इक्ष्वाकु-वंशी (च) और (विणिदाइजादो) विनीता [अयोध्या] में जन्म लेने वाले हैं [उन] (उसहं जिणिंदं) ऋषभ जिनेन्द्र को (सम्म) सम्यक् रूप से (वंदामि) वन्दन करता हूँ।
अर्थ-जो महाराज नाभिराय के श्रेष्ठ सुपुत्र हैं, मरुदेवी माता के नन्दन, जन्म से ही तीन ज्ञानयुक्त, इक्ष्वाकु-वंशी और विनीता अर्थात् अयोध्या में जन्म लेने वाले हैं, मैं उन प्रथम जिनेन्द्र श्री ऋषभजिन अर्थात् आदिनाथ भगवान को मन, वचन, काय की एकाग्रता पूर्वक सम्यक् रूप से वन्दन करता हूँ।
णीलुप्पलोव्वणयणाणि जस्स, आजाणुबाहूगयसुंढ-तुल्लं।
अइदिग्घ-कण्णं दिव्वंणडालं, वंदामि सम्मं उसहं जिणिंदं ॥2॥
अन्वयार्थ-(जस्स) जिनके (णयणाणिं) नयन (णीलुप्पलोव्व) नीलकमल के समान है (आजाणुबाहू) आजानुबाहु अर्थात् जंघाओं तक लटकते हुए हाथ (गयसुढतुल्लं) हाथी की सूंड़ के समान हैं, (अइदिग्घ-कण्णं) कान अत्यन्त दीर्घ हैं (णडालं) ललाट (दिव्वं) दिव्य है [उन] (उसहं जिणिंदं) ऋषभ जिनेन्द्र को [मैं] (सम्म) सम्यक् रूप से (वंदामि) वन्दन करता हूँ।
__ अर्थ-जिनके नयनों की शोभा नीलकमल के समान है आजानुबाहु अर्थात् जंघाओं तक लटकते हुए हाथ हाथी की सूंड़ के समान हैं, कान अत्यन्त दीर्घ हैं तथा जिनका ललाट दिव्य है, उन प्रथम जिनेन्द्र श्री ऋषभजिन अर्थात् आदिनाथ भगवान को मैं सम्यक् रूप से वन्दन करता हूँ।
उसहजिण-त्युदी :: 31