Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000
सात नारकी का एक दण्डक अर्थात् पहला दण्डक, दस भवनपति के दस दण्डक अर्थात् दूसरे से लेकर ग्यारहवें तक, बारहवां पृथ्वीकाय का दण्डक, तेरहवां अप्काय का, चौदहवां तेउकाय का, पन्द्रहवां वायुकाय का, सोलहवां वनस्पतिकाय का, सतरहवां बेइन्द्रिय का, अठारहवां तेइन्द्रिय का; उन्नीसवां चतुरिन्द्रिय का, बीसवां तिर्यंच पंचेन्द्रिय का, इक्कीसवां मनुष्य का, बाईसवां वानव्यंतर का, तेईसवां ज्योतिषी का और चौवीसवां वैमानिक देवों का।
इस प्रकार सब जीवों को मिलाकर चौवीस दण्डक होते हैं।
प्रश्न - भवनपति दस प्रकार के हैं। उनके दस दण्डक कहे गये हैं, तो फिर नरक सात हैं। उनका एक ही दण्डक क्यों कहा गया है?
उत्तर - प्रश्न बहुत उचित है। इसका समाधान इस प्रकार है - पहली नरक का नाम रत्नप्रभा है। उसका पृथ्वीपिण्ड एक लाख अस्सी हजार योजन का मोटा (जाड़ा) हैं। उसमें तेरह प्रस्तट (पाथडा) और बारह अन्तराल (आंतरा) हैं। प्रत्येक प्रस्तट की मोटाई तीन हजार योजन की है और प्रस्तट के बाद दूसरे प्रस्तट के बीच में जो आकाश प्रदेश है उसे अन्तराल कहते हैं। उस एक-एक अन्तराल की मोटाई ११५८३ योजन से कुछ अधिक है।
इस हिसाब से तीसरे अन्तराल में असुरकुमार जाति के देवों के आवास हैं। उसके आगे एकएक प्रस्तट को छोड़ते हुए बीच के अन्तरालों में भवनपति देवों के आवास हैं अर्थात् तीसरे अन्तराल में असुरकुमार, चौथे अन्तराल में नागकुमार, पांचवें अन्तराल में सुवर्णकुमार। इसी क्रम से बारहवें अन्तराल में दसवें भवनपति जाति के स्तनितकुमार देवों के आवास हैं। इस प्रकार तीसरे अन्तराल से बारहवें अन्तराल तक दस जाति के भवनपति देवों के आवास हैं। इस प्रकार अन्तरालों के बीचबीच में नारकी जीवों के प्रस्तट आ गये हैं। बीच-बीच में प्रस्तट आ जाने के कारण एवं व्यवधान पड़ जाने के कारण दस भवनपति देवों के दस दण्डक कहे गये हैं। पहली नरक और दूसरी के बीच में तथा दूसरी और तीसरी आदि नरकों के बीच में किन्हीं जीवों का व्यवधान न पड़ने के कारण सातों नरकों का एक दण्डक लिया गया है।
प्रश्न - पुराने थोकड़ों की पुस्तकों में लिखा है कि- पहले अन्तराल में असुरकुमार भवनपतियों के भवन हैं इस तरह दस अन्तरालों में दस भवनपति देवों के भवन हैं। ग्यारहवां और बारहवां अन्तराल खाली है सो क्या यह कथन ठीक है?
उत्तर - उपरोक्त कथन ठीक नहीं है। क्योंकि भगवती सूत्र शतक २ उद्देशक ८ में इस प्रकार बतलाया गया है - 'अहे रयणप्पभाए पुढवीए चत्तालीसं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो चमरचंचा णामं रायहाणी पण्णत्ता।'
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