Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान १ उद्देशक १
मिच्छद्दिट्ठियाणं णेरइयाणं वग्गणा, एगा सम्ममिच्छहिट्ठियाणं णेरड्याणं वग्गणा, एवं जाव थणियकुमाराणं वग्गणा । एगा मिच्छद्दिट्ठियाणं पुढविकाइयाणं वग्गणा एवं जाव वणस्सइकाइयाणं । एगा सम्मद्दिट्ठियाणं बेइंदियाणं वग्गणा, एगा मिच्छद्दिट्ठियाणं बेइंदियाणं वग्गणा, एवं तेइंदियाणं चउरिंदियाणं वि, सेसा जहा णेरड्या जाव एगा सम्ममिच्छद्दिट्ठियाणं वेमाणियाणं वग्गणा ॥ ८ ॥
कठिन शब्दार्थ - रइयाणं नैरयिकों की, वग्गणा वर्गणा, असुरकुमाराणं - असुरकुमारों की, वेमाणियाणं- वैमानिकों की, चउवीसदंडओ - चौबीस दण्डक के जीवों की, भवसिद्धियाणंभवसिद्धिक (भव्य) जीवों की, अभवसिद्धियाणं अभवसिद्धिक (अभव्य) जीवों की, सम्मद्दिट्ठियाणं- सम्यग् दृष्टि जीवों की, मिच्छद्दिट्ठियाणं मिथ्यादृष्टि जीवों की, सम्ममिच्छदिट्ठियाणंसम्यग् मिथ्या (मिश्र) दृष्टि जीवों की, थणियकुमाराणं - स्तनितकुमारों की ।
भावार्थ - नैरयिकों की वर्गणा यानी समुदाय एक है। असुरकुमारों की वर्गणा एक है यावत् वैमानिक देवों तक चौबीस ही दण्डक में रहे हुए जीवों की वर्गणा एक एक है। भवसिद्धिक यानी भव्य जीवों की वर्गणा एक है । अभवसिद्धिक यानी अभव्य जीवों की वर्गणा एक है । भवसिद्धिक नैरयिकों की वर्गणा एक है। अभवसिद्धिक नैरयिकों की वर्गणा एक है। इसी प्रकार यावत् भवसिद्धिक वैमानिक देवों की वर्गणा एक है और अभवसिद्धिक वैमानिकों की वर्गणा एक है। सम्यग्दृष्टि जीवों
वर्ग एक है। मिथ्यादृष्टि जीवों की वर्गणा एक है और सम्यग्मिथ्यादृष्टि यानी मिश्रदृष्टि जीवों . की वर्गणा एक है। सम्यग्दृष्टि नैरयिकों की वर्गणा एक है । मिथ्यादृष्टि नैरयिकों की वर्गणा एक है। सम्यग्मध्यादृष्टि यानी मिश्रदृष्टि नैरयिकों की वर्गणा एक है। इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों की वर्गणा एक है। मिध्यादृष्टि पृथ्वीकायिक जीवों की वर्गणा एक है। इस प्रकार यावत् अप्कायिक, ते उकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक जीवों की वर्गणा एक है। ये पांच स्थावर काय के जीव मिध्यादृष्टि ही होते हैं। सम्यग्दृष्टि बेइन्द्रिय जीवों की वर्गणा एक है। मिथ्यादृष्टि बेइन्द्रिय जीवों की वर्गणा एक है। इसी प्रकार तेइन्द्रिय और चौइन्द्रिय जीवों की भी एक एक वर्गणा है । बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चौइन्द्रिय इन तीन विकलेन्द्रिय जीवों में मिश्रदृष्टि नहीं होती है। शेष तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय से लेकर यावत् सम्यग्मिथ्यादृष्टि वैमानिक देवों तक सब जीवों की एक एक वर्गणा है । जैसा नैरयिकों का कथन किया गया है, वैसा ही इन सब जीवों का कथन करना चाहिए ।। ८ ।
विवेचन - दण्डक समान जाति वाले जीवों का वर्गीकरण अथवा स्वकृत कर्म भोगने के स्थान को दण्डक कहते हैं। सभी संसारी जीवों को चौबीस दण्डकों में विभक्त किया गया है वे चौबीस दण्डक इस प्रकार हैं -
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