Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
उत्तर - हे गौतम! पर्याप्तक वनस्पतिकायिकों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की कही गई है।
सूक्ष्म वनस्पतिकायिकों के औधिक (सामान्य) तथा अपर्याप्तकों और पर्याप्तकों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की कही गई है।
बायरवणप्फइकाइयाणं पुच्छा? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं दस वाससहस्साई। अपज्जत्तयाणं पुच्छा? गोयमा! जहण्णेण वि अंतोमुहुत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। पज्जत्तयाणं पुच्छा?
गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई ॥२२९॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! बादर वनस्पतिकायिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! बादर वनस्पतिकायिक जीवों की स्थिति जघन्य, अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट दस हजार वर्ष की कही गई है।
प्रश्न - हे भगवन् ! अपर्याप्तक बादर वनस्पतिकायिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
उत्तर - हे गौतम! अपर्याप्तक बादर वनस्पतिकायिकों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की कही गई है।
प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्तक बादर वनस्पतिकायिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! पर्याप्तक बादर वनस्पतिकायिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की कही गई है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्रों में पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक जीवों की स्थिति का क्रमशः निरूपण किया गया है।
बेइन्द्रिय जीवों की स्थिति बेइंदियाणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बारस संवच्छराइं। अपज्जत्तयाणं पुच्छा?
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