Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम प्रज्ञापना पद - रूपी अजीव प्रज्ञापना
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२. मृदु स्पर्श परिणत ३. गुरु स्पर्श परिणत ४. लघु स्पर्श परिणत ५. शीत स्पर्श परिणत ६. उष्ण स्पर्श परिणत ७. स्निग्ध स्पर्श परिणत और ८. रूक्ष स्पर्श परिणत।
- विवेचन - जो स्पर्श रूप में परिणत पुद्गल हैं वे आठ प्रकार के कहे गये हैं - १. कर्कश (कठोर) स्पर्श परिणत - पत्थर आदि के समान कठोर स्पर्श वाले पुद्गल २. मृदु (कोमल) स्पर्श परिणत - रेशम आदि के समान कोमल स्पर्श वाले ३. गुरु (भारी) स्पर्श परिणत - वज्र या लोह आदि के समान भारी स्पर्श वाले ४. लघु (हलका) स्पर्श परिणत - आक की रुई आदि के समान हलके स्पर्श वाले पुद्गल ५. शीत स्पर्श परिणत - मृणाल, कदली वृक्ष आदि के समान शीत स्पर्श वाले ६. उष्ण स्पर्श परिणत - अग्नि आदि के समान उष्ण स्पर्श वाले ७. स्निग्ध स्पर्श परिणत - घी आदि के समान स्निग्ध स्पर्श वाले ८. रूक्ष स्पर्श परिणत - भस्म-राख आदि की तरह रूखे स्पर्श वाले पुद्गल।
जे संठाण परिणया ते पंचविहा पण्णत्ता। तंजहा - १. परिमंडल संठाण परिणया २. वट्टसंठाण परिणया ३. तंस संठाण परिणया ४. चउरंस संठाण परिणया ५. आयय संठाण परिणया॥५॥
कठिन शब्दार्थ - संठाणपरिणया - संस्थान परिणत।
भावार्थ - जो संस्थान परिणत हैं वे पांच प्रकार के कहे गये हैं। यथा - १. परिमंडल संस्थान- वलयाकार रूप परिणत २. वृत्त संस्थान-वर्तुलाकार रूप परिणत ३. त्र्यन संस्थान - त्रिकोणाकृति रूप परिणत ४. चतुरस्र संस्थान - चतुष्कोणाकृति रूप परिणत और ५. आयत संस्थान - दण्डाकार रूप परिणत। __विवेचन - पदार्थ की आकृति विशेष को संस्थान कहते हैं। ये पांच संस्थान अजीव के हैं। जीव के तो छह संस्थान होते हैं। यथा - १. समचतुरस्र संस्थान २. न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थान ३. सादि संस्थान ४. वामन संस्थान ५. कुब्ज संस्थान ६. हुण्डक संस्थान। यहाँ अजीव का प्रकरण चल रहा है इसलिये अजीव के संस्थान कहे गये हैं। वलय (चूड़ी) की तरह बाहर का भाग वर्तुलाकार गोल और अंदर का भाग खाली (पोला) होता है उसे परिमंडल कहते हैं। कुम्हार के चाक की तरह अंदर का भाग.खाली (पोला) नहीं हो तो वृत्त संस्थान समझना चाहिये। ये परिमंडल आदि संस्थान घन और प्रतर के भेद से दो प्रकार के होते हैं। उनमें से परिमंडल संस्थान को छोड कर शेष संस्थानों के ओजः प्रदेश जनित-विषम संख्या वाले (१, ३, ५ आदि संख्या वाले) प्रदेशों से उत्पन्न और युग्म प्रदेश जनित-समसंख्या वाले (२, ४, ६ आदि संख्या वाले) प्रदेशों से उत्पन्न, इस प्रकार दो भेद होते हैं। उपरोक्त सभी संस्थानों की आकृति संघ द्वारा प्रकाशित विवेचन युक्त भगवती सूत्र के सातवें भाग के शतक २५ उद्देशक ३ (पृष्ठ ३२३२ से ३२३५ तक) में बताई गई है। उसके अनुसार विवेचन स्थापनाएं समझ लेनी चाहिये। उनमें उत्कृष्ट परिमंडल आदि सभी संस्थान अनन्त परमाणुओं से उत्पन्न हुए और
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