Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम प्रज्ञापना पद - रूपी अजीव प्रज्ञापना
२१
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(वास्तव में होते नहीं है किन्तु केवल कल्पना की जाती है इसलिये वे बुद्धि कल्पित कहलाते हैं।) द्विप्रदेशी त्रिपदेशी आदि विभाग स्कन्ध देश कहलाते हैं।
स्कन्ध प्रदेश - स्कन्ध रूप परिणाम को प्राप्त स्कन्ध के ही बुद्धि कल्पित प्रकृष्ट-अत्यंत सूक्ष्म निर्विभाग (जिसका विभाग न हो सके) अंश को स्कन्ध प्रदेश कहते हैं।
___परमाणु पुद्गल - परम-अत्यंत सूक्ष्म अणु, जिनका विभाग नहीं किया जा सके ऐसे निर्विभाग द्रव्य रूप पुद्गल को पुद्गल परमाणु कहते हैं। परमाणु, स्कंध से मिले हुए नहीं होते हैं।
ते समासओ पंचविहा पण्णत्ता। तंजहा-वण्ण परिणया १, गंध परिणया २, रस परिणया ३, फास परिणया ४, संठाण परिणया ५॥४॥
भावार्थ - वे संक्षेप से पांच प्रकार के कहे हैं-यथा - १. वर्ण परिणत २. गन्ध परिणत ३. रस परिणत ४. स्पर्श परिणत और ५. संस्थान परिणत।
विवेचन - स्कंध, स्कंध देश, स्कंध प्रदेश और परमाणु पुद्गल। ये चारों रूपी अजीव संक्षेप से पांच प्रकार के कहे हैं - १. वर्ण परिणत अर्थात् जो वर्ण रूप में परिणत हो। इसी प्रकार गन्ध परिणत, रस परिणत, स्पर्श परिणत और संस्थान परिणत भी समझ लेना चाहिये। . यहाँ परिणत शब्द भूतकाल का निर्देश करता है जो कि उपलक्षण से वर्तमान काल एवं भविष्यकाल का भी सूचक है। क्योंकि वर्तमान और भविष्य के बिना भूतकाल का संभव नहीं है। जो वर्तमान का अतिक्रमण कर चुका है वह अतीत होता है और जो अनागत का अतिक्रमण कर चुका है वह वर्तमान है। इस संबंध में कहा है कि -
भवति स नामातीतो यः प्राप्तो नाम वर्तमानत्वम्।
एष्यंश्च नाम सं भवति यः प्राप्स्यति वर्तमानत्वम्॥ - - जो अभी विद्यमान है उसको वर्तमान काल कहते हैं और जो वर्तमान को अतिक्रमण कर चुका है वह अतीत (भूत) काल कहलाता है और जो वर्तमान को प्राप्त करेगा वह भविष्य है। इस दृष्टि से वर्ण परिणत का अर्थ है - वर्ण रूप में जो परिणत हो चुके हैं, वर्ण रूप में परिणत होते हैं और वर्ण रूप में परिणत होंगे। इसी प्रकार गन्ध परिणत आदि का अर्थ भी तीनों काल विषयक समझ लेना चाहिये।
जे वण्ण परिणया ते पंचविहा पण्णत्ता। तंजहा - १. काल वण्ण परिणया २. णील वण्ण परिणया ३. लोहिय वण्ण परिणया ४. हालिद्द वण्ण परिणया ५. सुक्किल्ल वण्ण परिणया।
भावार्थ - जो वर्ण परिणत हैं वे पांच प्रकार के कहे गये हैं। यथा - १. कृष्ण (काला) वर्ण
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