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प्रस्तावना
दीक्षाग्रहण करने के पश्चात् पार्श्व द्वारा अष्टमभक्त ग्रहण करने का उल्लेख पद्मकीर्ति ने किया है । आवश्यक नियुक्ति में भी यही काल निर्दिष्ट है । पुष्पदन्त ने भी पार्श्व द्वारा दीक्षा के पश्चात् अष्टम भक्त ग्रहण करने का उल्लेख किया है। किन्तु कल्पसूत्र तथा तिलोय पण्णत्ति का इससे मतवैषम्य है । इन ग्रन्थों में पार्श्वद्वारा षष्टम भक्त ग्रहण करने की बात कही गई है। पार्श्व के उपसर्ग :
दीक्षा ले लेने की पश्चात् पार्श्व के ध्यान-मग्न हो जाने पर देवयोनि में उत्पन्न कमठ द्वारा पार्श्व को ध्यान से विचलित करने के लिए किए गए प्रयत्नों का वर्णन पद्मकीर्ति ने अपने ग्रन्थ में किया है। कल्पसूत्र में ऐसा कोई निर्देश नहीं कि पार्श्व को ध्यान से चलित करने के लिए किसी ने प्रयत्न किया । किन्तु दोनों परंपराओं में पार्श्व के ध्यान में विघ्न डाले जाने का वर्णन प्रचुरता से और समान रूप से किया गया है । यदि इन वर्णनों में कोई भेद है तो वह विघ्न डालने वाले के नाम का । उत्तरपुराण, पुष्पदन्त के महापुराण तथा रइधू के पासचरियमें उस विघ्नकर्ता का नाम शंबर दिया है। वादिराजसूरि ने उसका नाम भूतानंद बताया है । सिरि पास नाहचरियं, त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित तथा श्वेताम्बर परम्परा में लिखे गए समस्त ग्रन्थों में उस विघ्नकर्ता का नाम मेघमालिन् दिया है। पद्मकीर्ति ने यही नाम अपने ग्रन्थ में स्वीकार किया है।
पार्श्व के ध्यान में विघ्न डालने के वर्णन करने की परिपाटी किससे प्रारंभ हुई, नही कहा जा सकता । इतना ही कहा जा सकता है कि यह परिपाटी कल्पसूत्र की रचना के पश्चात् और उत्तरपुराण की रचना के पूर्व प्रारंभ हुई थी। कल्याणमंदिर स्तोत्र से ज्ञात होता है कि सिद्धसेन दिवाकर के समय तक यह धारणा घर कर चुकी थी कि पावे के तप भंग करने का प्रयत्न कमठ के द्वारा किया गया था । इस स्तोत्र के ३१ वें छंद में इसका स्पष्ट संकेत है कि कमठ ने पार्श्वपर अत्याचार किया ह श्लोक है
प्राग्भारसम्भृतनभांसि रजांसि रोषाद् उत्थापितानि कमठेन शठेन यानि ।
छायापि तैस्तव न नाथ हता..... (हे स्वामी, उस शठ कमठ ने क्रोधावेश में जो धूलि आपपर फेंकी वह आपकी छाया पर भी आघात न पहुंचा सकी)।
कल्याणमंदिर के इस संकेत से अनुमान होता है कि सिद्धसेन दिवाकर के समय तक कमठ नाम का व्यक्ति पार्श्वनाथ के विरोधी के रूप में ज्ञात रहा होगा । किन्तु जब उत्तरकालीन ग्रन्थों में पार्श्व के पूर्व जन्मों का विस्तृत वर्णन किया जाने लगा तब कमठ को पार्श्व के प्रथम भव का विरोधी मान लिया गया । और अंतिम भव के विरोधी को नाना नाम दे दिए गए।
पार्श्व पर किए गए अत्याचारों के प्रसंग में धरणेन्द्र नाम के नागका उल्लेख अनेक ग्रन्थों में हुआ है। उत्तरपुराण, त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित आदि ग्रन्थों में इसे उस नाग का ही जीव माना है जिसे कमठ ने अपने प्रहारों से कर दिया था और जिसके कान में पार्श्व ने णमोकार मंत्र उच्चारित किया था जिसके कारण वह देवयोनि प्राप्त कर सका था । यह धरणेन्द्र पार्श्व की रक्षा करता हुआ सभी ग्रन्थों में बताया गया है । पद्मकीर्ति ने उसे केवल नाग कहा है, उसके नाम आदि का उल्लेख नहीं किया। केवल ज्ञान की प्राप्ति :___मेघमालिन् द्वारा किए गए अत्याचारों की समाप्ति पर पार्श्वनाथ को केवल–ज्ञान उत्पन्न हो जाता है। केवल ज्ञान के पूर्व छद्मस्थकाल के विषय में दोनों परम्पराओं में पुनः मतवैषम्य है। कल्पसूत्र में वह काल ८३ दिन की अवधि का बताया गया है किन्तु तिलोय पण्णत्ति मे उसकी अवधि चार माह कही गई है।
१. श्री. पा. १०.८८. २. पा. च. १४. ५. १. ११.२०.१०.३. क. सु. १५८.
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