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विभूषित, बहुत महिमा वाला, पृथ्वी में प्रख्यात, उच्चता से, पर्वतों और राजाओं के मस्तक ऊपर रहा हुमा (राजमान्य) विद्यमान है 1 )
पट्टन (गुजरात) संघवीपाड़ा के जैन ग्रन्थ-भंडार में नं २६४ सार्धशतकवृत्ति ताड़पत्रीय प्रति के अन्त में वीर जिनेन्द्र के मङ्गल श्लोक के बाद वीरपुर नामक नगर के वर्णन के बाद उपर्युक्त श्लोक है । इस पल्लीवाल वंश में ठक्कुर धध नामक माननीय श्रावक और उसकी पत्नी रासलदेवी का गुण-वर्णन अपूर्ण है। यह पुस्तिका इस वंश के सज्जनों ने लिखा कर समर्पण की मालूम होती है। यह प्रशस्ति पट्टन भ० ग्रथ सूची ( गा0 प्रो० सि. नं० ७६ पृष्ठ १६३ ) में हमते. दर्शाया है।
स्वर्गीय लोढाजी ने इस इतिहास के पृष्ठ ७१ में इसका जिकर किया है, लेकिन वहां प्राधार-स्थान जै० पु० प्र० सं० १०३. पृ०६४ दर्शाया है, पट्टन भं0 ग्रन्थ सूची न देख सके।
पल्लीवाल इति ख्यातो, वंशः पर्वोदितोदितः ।... सोऽस्ति स्वस्तिकरो धात्र्यां, यत्र कीर्तिय॑जायत ।। भावार्थ:-पल्लीवाल नाम से प्रख्यात यह वंश है, जो पर्वो से उदित उदय वाला है, पृथ्वी में स्वस्ति-कल्यारण करने वाला है, जिस वंश में कीर्ति प्रकट हुई है।
पट्टन (गुजरात) के संघवी पाडा के जैन ग्रन्थ भण्डार में नं० ६० में रही हुई देवेन्द्रसूरि-कृति उपमिति भव प्रपंचा कथा-सारोद्धार (श्लोक बद्ध) के अन्त में १६ श्लोक वाली विस्तृत प्रशस्ति है, उसका दूसरा श्लोक ऊपर दर्शाया है । इस वंश के श्रेष्ठी वीकल की पत्नी रत्नदेवी थी। उनकी शीलवती पुत्री सूल्हरिण सुश्राविका थी, जो वज्रसिंह की प्रियतमा थी। जयदेवसूरि की भक्त उस श्राविका ने अपनी सासू
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