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वैश्यों को पाली का त्याग करके चले जाने के लिये विवश होना पड़ा हो और वह यों । पल्लीवाल ब्राह्मण कृषक कुलों ने वैश्य कुलों से सहाय मांगी हो अथवा बृत्ति में वृद्धि करने की कही हो और वैश्य कुलों ने दोनों प्रस्ताव अस्वीकार किये और इससे यह तनाव बढ़ चला हो। इससे भी अधिक विश्वस्त कारण यह प्रतीत होता है कि वैश्य कुलों ने अपने ऊपर चले आते ब्राह्मण कुलों के आर्थिक भार को कम करना चाहा हो और ब्राह्मण कुलों ने वह स्वीकार न किया हो । ठीक इसी समस्या के निकट में राज्य ने ब्राह्मण कुलों से कृषि योग्य भूमि छीनना प्रारंभ किया हो और वैश्य कुल यह सोचकर कि ब्राह्मण कुलों को उल्टा अब अधिक और देना पड़ेगा, न्यून करना दूर रहा। उक्त घटना काल के कुछ ही पूर्ण अथवा उसी समय अधिक अथवा सम्पूर्ण समाज के साथ पाली का त्याग करके निकल चले हों। इस आशय की एक कहानी पल्लीवाल वैश्य कुलों में प्रचलित भी है और वह परिणाम से सत्य भी प्रतीत होती है ।
उस समय पाली जैन पल्लीवाल वैश्यों में धनपति साह का प्रमुख होना राय राव की पोथियों में वरिंगत किया गया है । यह कहाँ तक प्रमाणिक है इस पर विचार करते हैं तो वह यों सिद्ध होता है कि राय परशादीलाल और मोतीलाल, के उत्तराधिकारियों के पास में पल्लीवाल जाति की विबरण पोथियाँ
तुलाराम ने श्री महावीर जी क्षेत्र
हैं । उनकी पोथी में श्रेष्ठि के लिये पल्लीवाल जातीय ४५ पैतालीस गोत्रों को निमंत्रित
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