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पाली से पल्लीवाल वैश्य संघ चल कर सहाजिगपुर आया और साडोरा पर्यंत तो संगठित रूप से बढ़ता रहा । साडोरा से विशेषतः संघ सर्व दिशाओं में विसर्जित होकर यथासुविधा जहाँ तहाँ वस गया । धनपति साह के पुत्र गुजा और सोहिल साडोरा में बसे । 3 गुजा के ४५ पैतालीस और सोहिल के ७ सात पुत्र हुए। इन (५२) पुत्रों के नाम पर अधिकांश गोत्रों की स्थापना हुई कहा जाता है । पल्लीवाल वैश्यों में इन बावन पुत्रों की स्मृति में ५२ बावन लड्डू विवाहोत्सवों में बेटे वालों को लड़की वालों की ओर से दिये जाते हैं।
पल्लीवाल वैश्यों ने पालीवाल ब्राह्मणों की लगान के कारण और पालीवाल ब्राह्मणों ने राज की भूमि लगान के कारण पाली का त्याग कर दिया और पाली कमजोर हो गई। पल्लीवाल वैश्य उत्तर पूर्व और ब्राह्मण दक्षिण पश्चिम की ओर गये । उत्तर पूर्व व्यापार धंधा के योग्य स्थल होने से वैश्य व्यापार धंधा और कुछ कृषि कार्य में प्रवृत्त हुए और ब्राह्मण दक्षिण पश्चिम में कृषि कार्य में ही पूर्ववत् प्रवृत्त हुए । आज भी दोनों वर्ग उक्त प्रकार ही उक्त प्रान्तों में ही वास कर रहे हैं। वैश्य तो पाली त्याग के समय से पूर्व भी गुर्जर, काठियावाड़, (३) कहीं सोहिल को पहले और गुजा को पीछे लिखा है।
नोट-जोधपुर राज्य के इतिहास में इस भारी घटना का कोई उल्लेख नहीं है। राज्य भी यहाँ कारण भूत हो और अप यश को दृष्टि से उल्लेख न किया गया हो।
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