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मिलता है। गद्य पद्य में आपने जितनी भी पुस्तकें लिखीं वह पाठकों को बड़ी पसन्द आई । श्री अगरचन्द जी नाहटा के लिखने पर 'पल्लीवाल जैन इतिहास' के सम्पादन का भार भी इन्हें सौंपा गया, जिसे इन्होंने बड़े श्रम के साथ लिखा है । खेद है कि इसके छपने से पूर्व ही श्री अरविन्द' जी स्वर्गवासी हो गये। इनके विछुड़ने से इनकी मित्र मंडली को ही दुःख नहीं हुआ बल्कि जैन समाज को अपने एक श्रेष्ठ कवि और अच्छे साहित्यकार के असमय ही छिन जाने से भारी धक्का लगा है। हमारे हाथ में तो 'जैन जगती' आदि इनकी रचित कोई भी पुस्तक जब आती है तभी श्री दौलतसिंहजी का मधुर हास्य, घुघराली केश राशि, सादी वेष भूषा और साहित्य सेवा स्मरण हो पाती है। यह मानना पड़ेगा कि इस पल्लीवाल इतिहास की सामग्री को भी इन्होंने बड़े परिश्रम और खोज के साथ संग्रहित किया तथा एक निष्पक्ष इतिहासकार की भाँति विखरी ऐतिहासिक कलियों को चुनकर पल्लीवाल जैन इतिहास के रूप में लिख कर एक बड़ी कमी को पूरा किया है । इसके लिए मैं लेखक के परिश्रम और साहित्य प्रेम की सराहना करता हूँ।
जवाहरलाल लोढा सम्पादक-श्वेताम्बर जैन" आगरा
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