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था । संवत १९५६ के अकाल में लोगों को हर प्रकार से सहायता करने के कारण यह लोढा परिवार सर्व प्रिय हो गया था। लाड़ चाव में पलने वाले बालक दौलत को पढ़ाई की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया जा रहा था। लड़के के बहनोई ने देखा कि बालक होनहार दीखता है इसे अवश्य पढ़ाना चाहिए, अतः वे इसे शाहपुरा ले गये। यह बालक कुछ तुतलाता था किन्तु पढ़ाई में एक दम चमक गया। एक ही वर्ष में कक्षा १ से चौथी में पहुंच गया। स्कूल के सभी अध्यापक बालक से बहुत खुश थे । दौलतसिंह ने क्रमश: मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करली । दशवीं कक्षा पास करने तक इनके परिवार की आर्थिक स्थिति एक दम कमज़ोर हो गई थी। माता पिता शिक्षा पर कुछ भी खर्च करने में असमर्थ थे, परन्तु इन्हें तो पढ़ने को धुन थी; विना किसी सहायता के अपने पैरों पर खड़े होकर पढ़ते ही रहे । ६ मास तक तो केवल चने की दाल उबली हुई खाकर इन्टर परीक्षा में उत्तीर्ण हुए। इनको तपस्या से सरस्वती मानो प्रसन्न हो गई और गद्य पद्य दोनों में ही इन्होने अच्छी योग्यता प्राप्त करली। पारिवारिक चिन्ता के कारण जीविकोपार्जन हेतु इन्हें राजस्थान छोड़कर भोपाल जाना पड़ा और वहाँ 'गोदावत जैन गुरुकुल' में गृहपति का कार्य भार सम्हाला । वहाँ कार्य करते हुए 'बागरा जैन गुरुकुल' की ओर से प्रकाशित विज्ञापन पढ़ने में आया तब आप 'बागरा' गये और वहाँ विराजित आचार्य श्री विजययतीन्द्र सूरि जी महाराज से प्रथम वार भेंट हुई। आचार्य श्री इनकी
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