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सदा उसके संग रहा।
सिंह सुधीर, प्रभूतगुणी, दृढ़प्रतिज्ञ, गुरु और जिनेश्वर देव का परमोपाशक था। उसने वि० सं० १४२० में श्रीं जयानंदसूरि और गुरु देवसुन्दरसूरि का महान् सूरि पदोत्सव किया था। सोषलदेवी, दुल्हादेवी, और पूजी नामा उसकी तीन स्त्रियां थीं। दुल्हादेवी के पासधर और पूजी के नागराज नामक एक-एक पुत्र था।
प्रशस्ति प्रधान पुरुष साल्हा था । साल्हा की स्त्री पुण्यवती हीरादेवी थी। इनके सात पुत्र थे-देवराज, शिवराज, हेमराज, खीमराज, भोजराज. गुणराज और सातवां वनराज । साल्हा ने श्री शत्रजयतीर्थ की यात्रा की थी। सिंह के बड़े भ्राता रत्न के पुत्र धनदेव और सहदेव ने प्रभावशाली सिंह के आदेश से वि० सं० १४४१ में श्री ज्ञानसागरसूरि का सूरिपदोत्सव किया तथा निरया के पुत्र लखमसिंह, रामसिंह - और गोवल ने वि० सं० १४४२ में अशेष-दूर-दूर के स्वधर्मी बंधुओं को निमन्त्रित करके श्री कुलमण्डन श्री गुणरत्नसूरि का सूरिपदोत्सव किया ।
श्रेष्ठि साल्हा की पत्नी हीरादेवी जैसी सुशीला, निर्मलबुद्धि थी। वैसे ही धर्मात्मा उसके पिता लूढ़ा और माता लाषण देवी थी।
श्रेष्ठि साल्हा का वंश वृक्ष इस प्रकार है :
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