Book Title: Pallival Jain Itihas
Author(s): Daulatsinh Lodha
Publisher: Nandlal Jain Pallival Bharatpur

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Page 182
________________ १५७ के इतिहास में गुर्जरदेश, राज्यों का समूचा इतिहास पढ़ा जा सकता है। गुर्जरभूमि का बड़ा से बड़ा राजा और अधिक से अधिक विस्तारवाला साम्राज्य इन पर निर्भर रहा है । इसी प्रकार राजस्थान मालवा के देशी राज्यों में प्रोसवालों का प्रभाव रहा । पल्लीवाल ज्ञाति को राजस्थान, मालवा के देशी राज्यों में अपना प्रभुत्व जमाने का अवसर प्राप्त नहीं हुमा । परिणाम इसका यह रहा है कि ज्ञाति छोटा छोटा वाणिज्य कृषि करती रही । जाति को अधिक उन्नतिशील बनाने के हेतु ही पल्लीवाल क्लब की आगरा में स्थापना हुई थी और वह उन्नतशील रह कर अन्त में 'पल्लीवाल महासमिति,' का रूप ग्रहण कर सकी थी। इसने जो क्रांति की और ज्ञाति में जो संगठन उत्पन्न किया उसके सम्बंध में सम्बंधित प्रकरण में कहा जा चुका है। अब तो इस ज्ञाति में पढ़े-लिखे लोगों की संख्या अच्छी बढ़ गई है और बढ़ती जा रही है। अर्थ के क्षेत्र में भी अब इसने अच्छो उन्नति की है। ___ इस ज्ञाति में भी अन्य जैन ज्ञातियों की भांति जैन धर्म के सर्व सम्प्रदायों की मान्यतायें प्रचलित हैं। जैसे श्वेताम्बर मूर्तिपूजक, स्थानकवासी, दिगम्बर प्रादि । सन् १९२० में मा० कन्हैयालाल जी, ने पल्लोवाल ज्ञाति की जन गणना का विवरण प्रकाशित किया था। उसका एक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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