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श्री नाहटा जी ने अपने लेख में पट्टावली की प्रामाणिकता के सम्बंध में यों लिखा है :
पल्लीवाल गच्छ की प्रस्तुत पट्टावली चन्द्रसूरि तक तो अन्य गच्छीय पट्टावलियों से मिलती हुई है, पर इसके आगे सवर्था स्वतंत्र है। __नं० ४४ शांतिसूरि का सं. १२२४ में स्वर्गवास लिखा है, परन्तु क्षेमशेखर शिष्य उदयशेखरकृत 'जयतारण विभानजिनस्तवन(गा० २१) में, इन्होंने सं० १२३६ माघ सुदि १३ को राजसी को भराई हुई इस प्रतिमा की प्रतिष्ठा (शांतिसूरि जी ने) कराई थी ऐसा उल्लेख है ; यथा संभव शांतिसूरि उपरोक्त ही होंगे ।
नं० ४६ अभयदेवसूरि का संवत १३२१ में स्वर्ग (वास) लिखा है; परन्तु 'जैन धातु प्रतिमा लेख संग्रह लेखांक ८६६ में इनका ( प्रतिष्ठा ) सं० १३८३ मा० सुदि ११ लेख उपलब्ध है । ___नं० ५१ शांतिसूरि का स० १४४८ में स्वर्गवास लिखा है; परन्तु पट्टावली-समुच्चय पृ० २०५ में संवत १४५८ का इनका लेख है । तथा श्री नाहटा जी के स्वयं के संग्रह में भी संवत १४५६ का लेख है।
नं० ५२ यशोदेवसूरि का स्वर्गवास सं० १४८८ लिखा है ; परन्तु संवत १५०१-७-११ तक के आप के द्वारा प्रतिष्ठित मूर्तियों के लेख उपरोक्त दोनों ग्रंथों में पाये जाते हैं।
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