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जैन साहित्य के प्रकांड विद्वान
श्री अगरचन्दजी नाहटा गेहुंआ रंग, लम्बा कद, छरहरा बदन, ऊंची किन्तु उलझी हुई गंगा जमुनी मूछे, कमर में ढीली धोती और उसकी भी लांघ प्राधी खुली हुई या तो बदन पर लिपटी हुई अथवा गंजी पहने हुए आंखों पर चश्मा लगा कर हैसियन के बोरे या चटाई पर बैठे हुए जिनकी मुखमुद्रा गम्भीर और शान्त है, ऐसे एक साहित्य साधक को आप भी अभय जैन ग्रन्थालय बीकानेर में दिन के प्रायः सोलह घंटे बैठे पाएंगे। घर से बाहर बहुत कम जाते हैं। यदि काम से कहीं. जाना हुआ तो बदन पर बंगाली कुर्ता, सिर पर मारवाड़ी पगड़ी, जिसके पेंच अस्त-व्यस्त रहते हैं, कंधे पर सफेद दुपट्टा, पैरों में चर्मरहित जूते । यह है उनकी बाहरी वेश भूषा। जिनका यह परिचय हम यहाँ देने जारहे हैं वह हैं लक्ष्मी एवं सरस्वती के वरद-पुत्र श्री अगरचन्दजी नाहटा। वैसे लक्ष्मी एवं सरस्वती दोनों की एक ही व्यक्ति पर कृपा हो ऐसा बहुत कम देखने में आता है लेकिन अगरचन्दजी पर दोनों ही कृपालु हैं । अपरिचित व्यक्ति उन्हें देखे तो सहसा विश्वास भी नहीं होगा कि यह सीधा-सादा दीखने वाला व्यक्ति विद्वान भी है और धनवान् भी। उनसे प्रत्यक्ष बात किए या सम्पर्क में आए बिना पता ही नहीं चलेगा कि वह इतने विद्वान हैं कि उनकी ख्याति केवल राजस्थानी जगत् में ही नहीं
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