Book Title: Pallival Jain Itihas
Author(s): Daulatsinh Lodha
Publisher: Nandlal Jain Pallival Bharatpur

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Page 208
________________ १८३ विचारों को भारत के बड़े-बड़े विद्वान भी प्रामाणिक और तथ्यपूर्ण मानते हैं । कई डाक्टरेट प्राप्त विद्वान विनोद में प्रायः कहते है-"नाहटा जी आप तो हम डाक्टरों के भी डाक्टर है । आपके अपरिमित ज्ञान को तुलना में हम लोगों का विश्वविद्यालयों में वर्षों से प्राप्त किया हुआ ज्ञान कुछ भी नहीं है।" उत्तर में नाहटा जी हँसते हुए कहते है-"मैं तो ५ वीं कक्षा का विद्यार्थी हैं ।" सचमुच नाहटा जी आज भी विद्यार्थी बने हुए हैं । उनकी अगाध ज्ञान प्राप्ति का यही कारण है। पुरातत्व की शोध नाहटा जी का प्रिय विषय है 'पुरातत्व की शोध' । वह इस बिषय के प्रकांड पंडित माने जाते हैं। उनके करीब २५०० निबन्ध और विभिन्न विषयों पर लिखे विद्वत्तापूर्ण लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। उनके लेख शोध पूर्णता के साथ-साथ नवीनता से परिपूर्ण भी होते है। प्राचीन और नवीन का संतुलन उनमें होता है। वह हमेशा कहते हैं—पीसे हुए को फिर दुबारा क्यों पीसना ? इसलिए उनके लेखों में नवोनता और स्वतन्त्र विचार होते हैं। उन्हें लिखने-पढ़ने का व्यसन-सा हो गया है। नाहटा जी द्वारा लिखित और संपादित करीब डेढ़ दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । “राजस्थान में हिन्दी के हस्त लिखित ग्रन्थों की खोज" के दो भाग साहित्य संस्थान, उदयपुर से प्रकाशित हुए हैं जिनमें कई अज्ञात ग्रन्थों का परिचय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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