________________
१८२ चाहते हैं । नाहटा जी कभी किसी को ना नहीं करते। सभी को यथासाध्य सहयोग देते हैं । अपने अनुभव से साहित्य-अन्वेषण के मार्ग को प्रशस्त कर देते है। अपने पास जो पुस्तकें नहीं होती वे दूसरी जगह से अपने नाम या कीमत से भी मंगाकर सहायता करते हैं। शोध के कुछ विद्यार्थी तो इनके पास आकर निवास भी करते हैं। शिष्य भाव से उनके पास बैठकर लाभ उठाते हैं। नाहटाजी की यह विशेषता है कि अपना सब काम करते हुए भी ऐसे विद्यार्थियों को उचित मार्ग दर्शन व सहायता करते हैं। राजस्थानी एवं जैन साहित्य में शोध करने वाले विद्यार्थी भली भांति जानते हैं कि इन दोनों विषयों पर शोध कार्य करना हो और थीसिम लिखना हो तो नाहटाजी की सहायता अनिवार्य है। केवल नवीन शोध अन्वेषक ही नहीं, डाक्टरेट की पदवी प्राप्त विद्वान भो शंका समाधान के लिए नाहटाजी से मार्गदर्शन चाहते हैं। हाल ही की बात है कि अहमदाबाद से एक डाक्टरेट प्राप्त विद्वान का पत्र आया था, जो भारत के एक प्राचोन ग्रन्थ विमल देव सूरि के "पडमचरिय" पर शोध कर रहे हैं। यह ग्रन्थ प्राकृत भाषा का है और वीर निर्वाण के ५३० वर्ष बाद लिखा गया था। इस ग्रन्थ के विषय में उठी कई शंकाओं के बारे में उन्होंने कई विद्वानों से बात चीत की थी किन्तु किसी से उन्हें संतोषजनक और निश्चित मत नहीं मिल सका । उनमें से कुछ ने शंकाओं के समाधान के लिए नाहटा जी से पूछने के लिए ही लिखा । तात्पर्य यह है कि नाहटा जी के दृष्टिकोण एवं
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org