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सिरि सिरिमाल ऊएसा पल्ली नामेण तहाय मेडते : विश्वेरा डिंड्या पंड्या तह नराण उरा ॥१॥ हरिसउरा जाइल्ला पुक्खर तह डिडूयडा ; खडिल्लवाल अद्ध, वारस जाइ अहीयाड ॥२॥
अर्थात श्रीमाल, प्रोसवाल, पल्लीवाल, मेड़तवाल, डिडू, विश्वेरा, खंडव्या, नरायणा, हर्षोरा, जायलवाल, पुष्करा, डिडू यडा और आधे खंडेलवाल, ये साढ़े बारह जाति होती हैं । इन जाति के नामों से स्पष्ट है कि उनका नामकरण उनके निवास स्थान पर ही आधारित है । अत : पल्लीवाल जाति भी पल्ली या पाली से ही प्रसिद्ध हुई है। __जाति के साथ किसी धर्म विशेष का पूर्णत : सम्बंध नहीं हैं जिस प्रकार श्रीमाली ब्राह्मण भी हैं और श्रीमाल जैन भी हैं इसी तरह खंडेलवाल और पल्लीवाल ब्राह्मण और जैन दोनों हैं । ओसवाल पहले सभी जैन थे, फिर राज्याश्रय आदि के कारण कुछ बैष्णव हो गये, फिर भी अधिक संख्या जैनों की ही है। पल्लीवाल वैश्यों में भी सभी एक ही गच्छ के अनुयायी नही थे, यह प्राचीन शिलालेखों और प्रशस्तियों से स्पष्ट है । जिस प्रांत में जिस गच्छ का अधिक प्रभाव रहा था, जिसका जिससे अधिक सम्पर्क हुआ वे उसी के अनुयायी हो गये। जैन जातियों का प्राचीन इतिहास बहुत कुछ अंधकार में है, वहीं स्थिति पल्लीवाल जैन इतिहास की है। प्राप्त प्रमाणों से यथासम्भव इस पुस्तक में प्रकाश डाला गया है। इति
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