Book Title: Pallival Jain Itihas
Author(s): Daulatsinh Lodha
Publisher: Nandlal Jain Pallival Bharatpur

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Page 201
________________ १७६ थे । आगे चल कर हम देखते हैं कि प्राचार्य सिद्धिसूरि पाली नगर में पधारते हैं और वहां के श्री संघ ने आचार्य श्री की अध्यक्षता में एक श्रमण सभा का आयोजन किया था जिसमें दूर-दूर के हजारों साधु साध्वियों का शुभागमन हुआ था । इस पर हम विचार कर सकते हैं कि उस समय पालो नगर में नियों की खूब आबादी होगी तभी तो इस प्रकार का वृहद कार्य पाली नगर में हुआ था। इस घटना का समय उपकेशपुर में प्राचार्य रत्नप्रभुसूरि ने महाजन संघ की स्थापना करने के पश्चात दूसरी शताब्दी का बतलाया है । इससे स्पष्ट पाया जाता है कि प्राचार्य रलप्रभु सूरि ने पाली को जनता को जैन धर्म में दीक्षित कर जैन धर्म उपासक बना दी थी, उस समय के बाद तो कई भावकों ने जैन मंदिर बनाकर प्रतिष्ठा करवाई तथा वई श्रद्धा सम्पन्न श्रावको ने पाली से शत्रु जयादि तीर्थों के संघ भी निकाले थे। इन प्रमाणों से इस निर्णय पर प्रासकते हैं कि पाली की जनता में जैन धर्म श्रीमाल और उपकेश वंश के समय प्रवेश हो गया था, जैन शासन में साधुओं का जिस नगर में विशेष विहार हुआ उस ग्राम नगर के नाम से गच्छ कहलाये। उपकेशपुर से उपकेश गच्छ, कोरंट नगर के नाम से कोरंट गच्छ और पाली नगर के नाम से पल्लीवाल गच्छ उत्पन्न हुआ । इस गच्छ की पट्टावली देखने से पता चलता है कि यह गच्छ बहुत पुराना है । जो उपकेश गच्छ और कोरंट गच्छ के वाद तीसरा नम्बर है । सं० ३२६ पल्लीवाल गच्छ की उत्पत्ति का समय है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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