Book Title: Pallival Jain Itihas
Author(s): Daulatsinh Lodha
Publisher: Nandlal Jain Pallival Bharatpur

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Page 188
________________ (५६) श्री जस्योदेवसूरि पाटि ५६ संवत १६६२ स्वर्ग . (६०) श्री नन्नसूरि पाटि ६० संवत १७१८ स्वर्ग (६१) श्री विद्यमान भट्टा (रक) श्री उजोअरणसूरि पाटि ६१ संवत १६८७ वाचक पदं संवत १७२८ ज्येष्ठ सुदि १२ वार शनिदिने सूरिपदं विद्यमान विजय राज्ये । (सं० १७३४ स्वर्ग) लेखक प्रशस्ति-संवत १७२८ वर्षे श्री शालिवाहन राज्ये शाके १५९३ प्रवर्त्तमाने श्री भाद्रपद मास शुभ शुक्लपक्षे नवमी ६ दिने वार शनिदिने श्रीमत् परिलकीयगच्छे भट्टा० श्री शांतिसूरि तत्प? भ० श्री श्री ७ जस्योदेवसूरि संताने श्री श्री उपाध्याय श्री महेन्द्रसागर तत्शिष्य मु० श्री जयसागर शिष्य चेला परमसागर वाचनार्थे श्री गुरांरी पट्टावली लिख्यतं ॥ श्री ॥ उपरोक्त पट्टावली अप्रकाशित है। यह पट्टावली बीकानेर बड़ा उपाश्रय के बृहत् ज्ञान भण्डार की सूची बनाते समय एक गुटकाकार पुस्तक के रूप में श्री अंगरचंदजी नाहटा जी को प्राप्त हुई थी । गुटका उसी गच्छ के यतियों द्वारा लिखा हुआ है । उसी गुटके की नकल करके श्री नाहटा जी ने अपने लेख 'पल्लीवाल गच्छ पट्टावली' में श्री आत्मानंद अर्धशताब्दी ग्रंथ में उसे प्रकाशित की है। १६ वें श्री शांतिसूरि से २२ वें श्री श्रामदेवसूरि पर्यत सातों नाम मागे के पट्टधरों के लिये कमशः रूढ़ि बनकर चलते रहे हैं। नामों की रूढ़ता अन्य गच्छों में भी पायी जाती है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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