Book Title: Pallival Jain Itihas
Author(s): Daulatsinh Lodha
Publisher: Nandlal Jain Pallival Bharatpur

View full book text
Previous | Next

Page 196
________________ १७१ वैश्य और ब्राह्मण पाली के नाम पर पल्लीवाल वैश्य और पालीवाल ब्राह्मण कहलाये । जिस समय का मैं हाल लिख रहा हूँ वह जमाना क्रिया काँड का था और ब्राह्मण लोगों ने ऐसे विधि विधान रच डाले थे कि थोड़ी थोड़ी बातों में क्रिया कांड की अावश्यकता रहती थी और वह क्रिया कांड भी जिसके यजमान होते थे वे ब्राह्मण हो करवाया करते थे। उसमें दूसरा ब्राह्मण हस्तक्षेप नहीं कर सकता था; अत: वे ब्राह्मण अपनी मनमानी करने में स्वतंत्र एवं निरंकुश थे। एक वंशावली में लिखा हुआ मिलता है कि पल्लीवाल वैश्य एक वर्ष में पल्लीवाल ब्राह्मणों की १४०० लीकी और १४०० टके दिया करते थे तथा श्रीमाल वैश्यों को भी इसी प्रकार टैक्स देना पड़ता था। पंचशतीशाषोडशाधिका अर्थात ५१६ टका लाग दाया के देने पड़ते हैं । भूदेवों ने ज्यों ज्यों लाग दाया रूपी टैक्स बढ़ाया त्यों त्यों यजमानों की अरुचि बढ़ती गई। यही कारण था कि उपकेशपुर का मंत्री वहड़ ने म्लेच्छों की सेना लाकर श्रीमाली ब्राह्मणों से पीछा छुड़वाया। इतना ही क्यों वल्कि दूसरे ब्राह्मणों का भी जोर जुल्म बहुत कम पड़ गया। क्योंकि ब्राह्मण लोग भी समझ गये कि अधिक करने से श्रीमाली ब्राह्मण की भाँति यजमानों का सम्बंध टूट जायगा जो कि उनपर ब्राह्मणों की आजीविका का आधार था, अतः पल्लीवालादि ब्राह्मणों का उनके यजमानों के साथ सम्बंध ज्यों का त्यों बना रहा। मंत्री वहड़ की घटना का समय वि० सं० ४०० पूर्व * का था यही समय पल्लीवाल जाति का समझना चाहिये। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216