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द्वारा, द्वितीय लच्छी बाई नामक श्राविका द्वारा और तृतीय श्री मालाशाह संकलेचा द्वारा बना । लच्छी बाई और मालाशाह दोनों भ्राता भगिनी थे। ये दोनों मंदिर वि० की सोलहवीं शताब्दी के द्वितीय भाग में बने हैं ।
नाकोड़ा तीर्थ सम्बन्धी कई प्रतिमा लेख एवं प्रशस्ति लेख प्रकाशित हो चुके हैं। प्रकाशित करने वाले विद्वानों में प्राचार्य श्रीमद विजययतीन्द्र सूरिजी द्वारा प्रकाशित 'श्री यतीन्द्र विहार दिग्दर्शन भाग दो में इस तीर्थ का सलेख विस्तृत विवरण छपा है । कुछ लेख श्री पल्लीवाल गच्छीय प्राचार्य यशोदेव सूरि और पल्लीवाल संघ से संबन्धित हैं । ये लेख वि० सं० १६३७, १६७८, १६८१, १६८२ हैं । इन लेखो से स्पष्ट विदित होता है । कि श्री नाकोडा तीर्थ पर पल्लीवाल गच्छ और पल्लीवाल ज्ञाति दोनों का अधिक प्रभाव रहा है । यहाँ तक ध्वनित होता है कि वीरमपुर में पल्लीवाल संघ अधिक घरों की संख्या में था और नगर में उसका वर्चस्व था ।
श्री यशोदेवसूरि की विद्यमानता में वि० सं० १६६७ में संघ ने भूमिगृह बनवाया । वि० सं० १६७८ में संघ ने रंगमण्डप का वतुष्क करवाया वि० सं० १६८१ में पल्लीवाल गच्छीय संघ ने प्रति सुन्दर तीन गवाक्ष सहित निर्गम द्वार की चौकी विनिर्मित करवाई । एवं वि० सं० १६८२ में समस्त संघ ने नन्दिमण्डप का निर्मारण करवाया ।
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