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और साहित्य प्रम को परिचायिका है। इन पूर्वजों में समस्त जैन ज्ञातियों में उत्पन्न पुरुष रहे हैं। किसी के कम तो किसी के संख्या में अधिक । पल्लीवाल ज्ञाति एक लघु ज्ञाति हैं। फिर भी इस लघु इतिहास से स्पष्ट हो जाता है कि इस ज्ञाति में उत्पन्न पुरुषों ने शत्रुजय तीर्थ, गिरनार तीर्थ, समेत शिखर तीर्थ के लिये संघ निकाले । शिल्प कार्य भी करवाये । अर्बुद तीर्थ पर विपुल द्रव्य व्यय किया। श्री महावीर जी तोर्थ की स्थापना की और अनेक छोटे बड़े नगर और ग्रामों में मंदिर बनवाये । प्रतिष्ठायें करवाई और अनेक जिन बिम्बों की स्थापना की।
. श्री नाकोड़ा तीर्थ-आज जहाँ श्री नाकोड़ा तीर्थ है वहाँ बीरमपुर नाम का नगर था। नाकोड़ा तीर्थाधिराज प्रतिमा वि० सं० १४२६ नाकोर नामक नगर से जो वीरमपुर से २० मील दूर था, वहाँ की नदी के कालीद्रह से प्राप्त १२० जिन बिम्बों के सहित लाकर नवनिर्मित मंदिर में विराजमान की गई थी। चूकि प्रतिमा ध्वंशित नाकोर नगर की कालीद्रह से लायी गई थी अतः वीरमपुर का नाम ही बदल कर नाकोर तीर्थ के पीछे मालानी 'नाकोड़ा' प्रसिद्ध हो गया। यह नाकोड़ा तीर्थ मारवाड़ विभाग के मालानी परगना में बालोतरा रेल्वे स्टेशन से दक्षिण ६ मील के अतर पर है। यहाँ तीन भव्य मंदिर हैं-एक भ० पार्श्वनाथ, द्वितीय भ० ऋषवदेव और तृतीय भ० शांतिनाथ मंदिर के नाम से हैं। प्रथम मंदिर श्री संघ
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