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माया, राहदारी आदि माफ किये। उसकी पुष्टि में महाराजा सवाई जगतसिंह ने कई कर माफ किये और सवाई-जयपुर,कठ सवाई-जयपुर, सांगानेर, कागुढ़े, जावादीनी राणी, सामरी, मालपुरा, टोडा रायसिंह- लोवा, वीराहोड़ा, चाटसू, निवाई, भगवतगढ़, सवाई माधोपुर, खंडार उदेई, बामणवास, हिन्डोण, टोडाभीम, पावटा, पिडामणी, वाहाची, घोसा, खोहरी, पहाड़ी, कामा, पोट, नारनोल, अगपुरा, श्रीमाधोपुर, रामगढ़, अमरसेन, पुख्यावास, जोबनेर, उजीरपुर, मलारणा, टोंक, गाजीकोथानी, वैराठ, निगणपुर में व्यापार धंधा करने की आज्ञा पौष शु० २ सं० १८३४ को प्रदान की। महाराज मानिकपाल ने भी उपरोक्त वि० सं० १८३४ माघ कृ. ५ को दीवान मोतीराम बुद्धसिंह को करौली प्रमुख में दुकान,हवेली बनाने की तथा व्यापारधंधा करने की आज्ञा प्रदान की। आज भी शिखरवंध हवेली मय कचहरी के बनी हुई मौजूद है।
महाराज मानिकपाल ने वि० सं० १८४० में आषाढ़ कृ०१ को दीवान बुद्धसिंह का वार्षिक वेतन रु० चार सहस्त्र का पुन: आज्ञापत्र प्रचारित किया था। इससे यह लक्षित होता है कि वेतन के रूप में जो गाँव दिये हुए थे वे ले लिये गये हों और रोकड़ वेतन राज्य के कोष से दिया जाने लगा हो। नोट-रियासती युग में अन्य रियासतों के लोग अन्य रियासती नगर, कस्बा राजधानियों में हाट, हवेली नहीं बना सकते थे व्यापार
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