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अपने प्राण बचा पाये; परन्तु रुई जलने का इनको दुःख इतना हुआ कि फिर इनका स्वास्थ्य पनपा ही नहीं । इसी अन्तर में इन को भयंकर दद्रुरोग हो गया । कई भांति के उपचार किये; परन्तु यह दद् इनके प्राणों का ग्राहक बना । पचपन (५५) वर्ष की आयु में ही ये स्वर्ग सिधार गये। ___ पिता की मृत्यु के पश्चात् घर का भार बाबू निहालचंद पर पड़ा । वाबू निहालचंद पिता की जोवितावस्था ही में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर चुके थे । उन दिनों में मैट्रिक-उत्तीर्ण व्यक्ति का भी बड़ा सम्मान था और सरकारी नौकरी सहज मिल जाती थी। इन्होंने कानूनगोई को भी परीक्षा दी थी। यह बड़े उदार, दयालु एवं सज्जन प्रकृति के थे। अपने दोनों भाइयों को बड़ा प्यार करते थे। इनके दो पुत्र-जुगेन्द्रचंद और सुरेशचंद तथा दो कन्यायें सत्यवती और कलावती नाम की चार संतान हुई थीं। दोनों पुत्रों का जन्म क्रमशः वि० सं० १६४० व १९५० में हुआ था। सरकारी नौकरी इन्होंने पूरे ३० तीस वर्ष की थी। इनको लकवा हो गया और ३-४ दिवस अस्वस्थ रह कर इन्होंने देह त्याग किया । इन्होंने अपने पुत्रों और भाइयों को सुशिक्षित बनाने में तन, मन, धन तीनों का पूरा २ व्यय किया।
भेदिलाल का जन्म आषाढ़ शु० १४ को वि० सं. १९२१ में हुआ था । अापका शिक्षण बरारा में ही हुआ। सं० १९३४ में अंगूठी काम से आपका विवाह हुआ । इसके पश्चात् पाप दूकान करने लगे। दूकान में आपको टोटा सहन
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