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आज उस मन्दिर की दशा बहुत अच्छी है । आपके ही प्रयास से पल्लीवाल जैन कान्फ्रेंस की स्थापना हुई और उसी के द्वारा आपने पल्लीवाल जन गणना और कई पल्लीवाल जैन मन्दिरों का जीर्णोद्धार आदि कार्य भी कराये ।
भरतपुर के श्री महावीर भवन को सुन्दर ढङ्ग से बनाने का श्रय भी आपको ही है ।
आपने सन १९३५ में कुछ पल्लीवाल भाइयों के साथ तीर्थाधिराज श्री सिद्धाचलजी और गिरिनारजी की यात्रा की। इसके पश्चात सन् १९५६ ई० में एक यात्री संघ लेकर आप मोटर बस द्वारा पूर्व देशीय जैन तीर्थों की यात्रार्थ गये जिसका विवरण १ सितम्बर १९५६ के 'श्वेताम्बर जैन ' अखबार में छप चुका है ।
श्री मिट्ठनलालजी कोठारी के पूर्वजों में श्री नारायनदासजी के पौत्र श्रौर श्री दयारामजी के पुत्र दीवान मोतीरामजी बहुत प्रख्यात व्यक्ति हुए। जिनको महाराज साहब श्री रंजीतसिंह भरतपुर नरेश ने एक पट्टा असोज बदी १ सम्बत १८६१ को लिख कर दिया था कि भरतपुर राज की ओर से गोवर्धन में दीवान मोतीरामजी प्रबन्ध करेंगे और उनके पास मुसद्दी एक जमादार सिपाही ४८ व घोड़ा घुड़ सवार वगैरः रहेंगे और उनकी तनख्वाह खर्चा वगैर: सब राज्य से उनके पास भेज दिया जाया करेगा। जिनका शाजरा निम्न प्रकार है; इस शजरे के वर्तमान कुटुम्ब में प्रख्यात व्यक्ति श्री मिट्ठनलालजी कोठारी हैं ।
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