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इतिहास तथा राजनीति के अतिरिक्त वह अंग्रेजी हिन्दी और संस्कृत के भी ऊँचे विद्वान थे । डाक्टरेट के लिए थीसिज के अतिरिक्त उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखीं जिनमें अंग्रेजी में 'जहाँगीर ' का इतिहास सबसे प्रसिद्ध है । अब इसका हिन्दी अनुवाद भी हो गया है ।
एक बार यह इन्डियन पोलिटिकल साइन्स कान्फरेंस के अध्यक्ष भी निर्वाचित हुए । अध्यक्षीय पद से इनका भाषण अत्यंत सारगर्भित हुआ था ।
महात्मा गांधी ने भी एक बार इन से देश के संविधान का मसौदा निर्माण करने के सम्बंध में परामर्श किया था ।
विश्व विद्यालय में इनकी योग्यता की ख्याति के कारण ही देश के प्रत्येक सूबे के बहुत से छात्र राजनीति पढ़ने के लिए आते थे । इनकी विद्वत्ता की ख्याति केवल देश में ही नहीं थी वरन् अन्तर्राष्ट्रीय थी और संसार के बड़े-बड़े विश्व विद्यालय के प्रोफेसरों से इनका काफी संपर्क रहता था और वे इनका अत्यधिक सम्मान करते थे ।
इनका चरित्र बड़ा ऊँचा था ! स्वभाव बड़ा कोमल था । प्रथम बार ही इनके सम्पर्क में आने पर मनुष्य अत्यन्त प्रभावित हो जाता था । आप ८ अप्रेल १६४५ ई० को जिनेन्द्रदेव का स्मरण करते हुए स्वर्गवासी हो गये ।
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