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व्यस्त रहने के कारण आप उसको मूर्त रूप न दे सके। फिर भी प्रापने यत्र तत्र टिप्पण लिखे, ऐतिहासिक सामग्री का संकलन किया, जिनका इस प्रस्तुत लघु इतिहास में सराहनीय उपयोग किया गया है ।
आपने जैसी ज्ञाति की सेवा की वैसे हीं प्रपने कुल को भी सम्पन्न वनाया | ज्येष्ठ भ्राता निहालचंद जी के स्वर्गवास के पश्चात् आपने उनके पुत्रों को पुत्रतुल्य समझा तथा अपने द्वितीय व भ्राता को अजमेर बुलाकर अपनी सम्मति- सूचना से व्यापार में योग-सहयोग दिया, जिसका परिणाम यह हुआ कि तीनों भ्राताओं के कुल अच्छे समृद्ध और सुखी बने । आप नारमल स्कूल अजमेर के यशस्वी प्रधानाध्यापक रहे थे :
विवाह संस्कार के १६-१७ वर्ष पश्चात् आपके दो सुपुत्र. विष्णचन्द्र और प्रकाशचन्द्र हुए जिनका जन्म क्रमशः वि० सं० १६६० और १६६२ में हुआ ।
जन्म भूमि ग्राम बरारा से भी श्रापको सदा प्रेम रहा । बरारा में आपने 'वंशोन्नति' नाम की सभा स्थापित की थी। इस सभा की कई बैठकों के हो जाने पर यह प्रेरणा प्राप्त हुई कि पल्लीवाल ज्ञातीय कुल एवं वंशों में प्रचलित रीति- रश्मों की (जन्म से मृत्यु पर्यन्त होने वालों की ) एक सूची के रूप में 'पल्लीवाल रीतिप्रभाकर' पुस्तक प्रकाशित की जाय। इस पुस्तक का द्वितीय संस्करण परिवर्धन संशोधन के साथ प्रापने और मास्टर मंगलसेन ने तैयार किया
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