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दीवान बुद्धसिंह ने करौली में जैन मंदिर बनवाया और बड़ी धूम-धाम से उसका वि० सं० १८४२ पौष० कृ० ३ रविवार को प्रतिष्ठा कार्य सम्पन्न किया। उक्त मंदिर की देखरेख, सेवा, पूजा का कार्य यति श्री नानकचंद्र जी ( जिनके पूर्वजों को महाराजा गोपालसिंह ने वि० सं० १७८६ में करौली लाकर वसाया था और उनको राजवंश में पंडिताई करने तथा जन्मपत्रिकायें बनाने का कार्य पीढ़ी-दर-पीढ़ी करते रहने का प्रमोघ अधिकार प्रज्ञापत्र द्वारा दिया था । ) को अर्पित किया तथा मंदिर के नीचे की चार दूकानें भेट की ।
धन्धा नहीं कर सकते थे जब तक कि उस नगर, कस्बा अथवा राजधानी का राजा उनको ऐसा करने की श्राज्ञा नहीं दे देता था ।
रियासती काल में भेंट, बेगार, मापक, डाँड बिरार चौकी, पर आदि कई कर वैश्यों को देने पड़ते थे ।
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