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कविवर श्री दौलतराम जी बोसवीं शताब्दी के जैन एवं जैनेतर कवियों में से कविवर दौलतराम जी आध्यात्मिक एवं दार्शनिक कवियों में अग्रिम पक्ति के कवि हो गये हैं । इनका जन्म वि० सं० १८५० और ५५ के मध्य हुमा, बतलाया गया है । सन् १८५- के गदर में इनको भी कुछ कष्टों का सामना करना पड़ा था। अपने परिवार को सुरक्षा की दृष्टि से लेकर भागते हुए इनकी जन्म पत्रिका कहीं गिर पड़ी अथवा गुम हो गई । उक्त जन्म-समय इनके ज्येष्ठ पुत्र टीकाराम जी से पूछ कर लिखा गया है ऐसा श्रीमती सरोजनी देवी द्वारा संपादित दौलत विलास' नामक इनकी कविता-रचनाओं के संग्रह से ज्ञात हुआ है। इनके पिता पल्लोवान ज्ञातीय लाला टोडरमलजी गंगीरीवाल ग्राम सासनो परगना हाथरस, में रहते थे। लोग इनके कुल को फतेहपुरिया भी कहते थे। लालाटोडरमलजी के एक भाई और थे और उनका नाम लाला चुन्नीलाल था। दोनों भ्राता हाथरस में कपड़े की दुकान करते थे। कविवर दौलतराम का विवाह अलीगढ़ निवासी लालाचिन्तामणि की सुपुत्री से हुआ था। कविवर कुशाग्र बुद्धि, शान्तस्वभावी, निर्लोभी, दयालु व न्यायशील प्रकृति के थे । इनका समुचित शिक्षण हाथरस में ही
हुना । कुशाग्रबुद्धि होने के कारण इन्होंने व्यवहारिक ज्ञान के .. साथ ही संस्कृत भाषा एवं जैन ग्रंथों का अच्छा अध्ययन भी कर
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