________________
८६
इस कुल की ख्याति श्रेष्ठि सुन्दरलाल के समय में और अधिक बढ़ी | महाराजा जयसिंहपाल ने श्रेष्ठि सुन्दरलाल को उनकी सेवाओं से प्रसन्न होकर एक ग्राम जागीर में प्रदान किया; परन्तु बुद्धिमान् श्रेष्ठि ने जागीर 'लेना स्वीकार नहीं किया । इतिहास बोलता है - जिस २ जैन ने जागीर ली वह अन्ततोगत्वा जैनत्व से दूर ही नहीं हुआ वरन बड़े नरेशों के अहर्निश सम्पर्कभी सहवास से पथ भ्रष्ट होकर जैन नहीं रहा ।
सेठ वंश
आज भी इस कुल में लगभग २०० स्त्री-पुरुष बाल-बच्चे हैं । इस कुल का करौली में एक बड़ा मोहल्ला बन गया है । उस समय का एक सम्मिलित मकान इस कुल की समृद्धता, व्यापारविस्तार का आज भी विशद परिचय दे रहा है । यह सात मंजिला है । आगे और पीछे दो मोहल्लों में खुलता है । देखने से अनुमान किया जा सकता है कि आज उसके बनाने में २-३ लाख रुपयों का व्यय सम्भव है। स्त्रयं करौली नगर में इस कुल के व्यक्तियों की १८ अठारह दुकानें चलती थीं । सब से बड़ी फर्म (पेढ़ी) का नाम खूबराम हरसुखराम था । उपरोक्त पुरुषों के अतिरिक्त इस कुल में निम्न व्यक्ति भी कुछ प्रसिद्ध हुए हैं ।
श्र े० बालमुकुन्द और हरदेव सिंह - खूबराम और हरसुखराम के पश्चात् ये कुशल एवं बुद्धिमान व्यापारी हुए । इन्होंने अपनी कुशलता से व्यापार को खूब बढ़ाया ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org