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पल्लीवालज्ञातिय श्राविका सांतू और उसका
पितृ परिवार अनुमानतः वि० तेरहवीं शताब्दी में पल्लीवालज्ञातीय सद्गुणी धर्मात्मा श्रीचन्द्र नामक श्रावक रहता था। उसकी स्त्री माई नामा अत्यन्त धर्मपरायण और देब,गुरु की परम भक्ता थी । इन के साभड़ और सामंत नामक दो महागुणी पुत्र एवं श्रीमती और सान्तू नामा दो पुत्रियां थी । श्रीमती बालवय से ही धर्मांनुरागिनी थी। उसने श्रीजयसिंहसूरि के पास में दीक्षा ग्रहण की। उसकी बहिन सांतू ने 'पाचारांगसूत्र' प्रति लिखवाकर अपनी बहिन श्रीमती गणिनी को भेंट की और श्रीमती गणिनी ने उक्त प्रतिको श्री धर्मघोषसूरि को वाचनार्थ अर्पित की।'
पल्लीवालज्ञातीय साधु गणदेव प्राचीन काल में पालीवालज्ञातीय श्रे० पूना के पुत्र बोहित्थ के पुत्रसुधार्मिक श्रावक गणदेव ने त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित के तृतीय खण्ड को लिखवा कर श्री स्तम्भनतीर्थ की पौषधशाला में वाचनार्थ पठनार्थ अर्पित किया । २ .
पल्लवालज्ञातीय ठक्कुर धंध संतानीय प्राचीन कालमें वीरपुर नामक अति धनी नगर में पल्लीवाल
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