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लिखा गया है अपनी अम्नाय में साध्वी बन गई थी और उसने उत्तम संयम पाल कर गुरुणीपद प्राप्त किया था।
लाषण की स्त्री का नाम रुक्मिणी था। रुक्मिणी दान देने में नित्य तत्पर रहती थी । दीनों के प्रति वह बड़ी दया रखती थी। इनके नरपति, भुवनपाल और यशोदेव नाम के तीन पुत्र हुए थे । ये तीनों पुत्र तीर्थ, गुरु और धर्म की महान् सेवायें करके प्रति प्रसिद्धि को प्राप्त हुए थे। जाल्हणदेवी और जासी नाम की दो पुत्रियाँ थी । ये दोनों पुत्रियाँ भी सधर्मकर्म निपुणा थीं।
नरपति के नायिकदेवी और गौरदेवी नाम की दो स्त्रियाँ थीं। गौरदेवी से उसको सामंतसिंह नाम का एक पुत्र प्राप्त हुआ था।
भुवनपाल की स्त्री पाउंदेवी थी, जो पृथ्वी मण्डल में अपने शीलरत्न के लिये विख्यात थी।
यशोदेव की पत्नी का नाम सोहरा था। इनके सांगण नामक प्रतिभावान् एक पुत्र था।
लाखरण के नाना का नाम राजपाल, नानी का नाम राणीदेवी और मामा राणिग और बूटड़ि नामा थे । लाषण तीर्थयात्रा का प्रेमी, कुल प्रतिपालक, सज्जनों का सदा हित करने वाला, संसार की क्षणभंगुरता का समझने वाला, सदज्ञानी और शास्त्रों के प्रति सदा विनय, सम्मान रखने वाला, नित्य सुगुरु के दर्शन करनेवाला समाधि ध्यान का ध्याने वाला एक दृढ़ जैन धर्मी श्रावक था।
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