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हरिभद्रसूरिकृत "समरादित्य कथा" जैन कथा-साहित्य में अत्यन्त विश्रुत कथा है । उसमें धर्म में मुख्य-मुख्य तत्त्व, सिद्धान्तों का अनुभवसिद्ध दर्शन उपलब्ध होता है। शास्त्ररसिक श्रेष्ठि लाषण ने अपने पिता जाजाक और माता जयतुदेवी के पुण्यार्थ उक्त कथा की प्रति वि० सं० १२९६ में श्री रत्नप्रभसूरि के आदेश से लिखवाई और भावना भाई कि सर्वजगत् का कल्याण हो, सर्वप्राणी परोपकारशील बनें, दोषों का विनाश हो और सर्वत्र संघ सुखी हो। इन भावनाओं के साथ उक्त प्रति का व्याख्यान गुरु श्री रत्नप्रभसूरि से सर्व संघ के लाभार्थ करवाया।
श्रेष्ठि लाषण का वंशवृक्ष
साढ़देव (साढू)
देसल (पद्मी)
जाजाक (जयतु) जसपाल (संतुका) नाऊकायाजानुका (पुत्री) लाषण (रुक्मिणी) रत्नसिंह
धनसिंह
नरपति भुवनपाल यशोदेव जाल्हणदेवी जासी (१ नायिकदेवो) (पऊदेवी) (सोहरा) २ गौरदेवी)
सांगण सामंतसिंह
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