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कृषि भी कम करते हैं। ये तो कृषि करवाते हैं और रखेल कृषि से
आधा अथवा तीजा चौथा भाग फसल का ले लेते थे। आज भी इस ज्ञाति के अधिकांश घर इस पद्धति पर ही कृषि करते और करवाते हैं।
पालीवाल ब्राह्मणों के १२ बारह गोत्र कहे जाते हैं, परन्तु अब केवल गर्ग, पाराशर, मुद्गलस, आजेय, उपमन्यस, वाशिष्ट और जात्रिस ही रह गये हैं । पाली में पाराशर गौत्रीय ब्राह्मणों का अधिक प्रभाव था। इनके गोत्र जाजिया, पूनिद, धामट,भायल, ढूमा, पेथड़, हरजाल, चरक, सांदू कोरा, हरदोलया, बनया यह बारह थे। पालीवाल ब्राह्मण जनेऊ रखते हैं , यज्ञ करते हैं ,मृत का दाह संस्कार करते हैं। ये रक्षा बंधन का श्रावण १५ का त्यौहार नहीं मनाते हैं । इसका कारण यह बतलाते है कि उस दिन इनको भारी विपत्ति का सामना करना पड़ा था और पाली का त्याग करना पड़ा था।
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