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इन्होंने पाली का त्याग किया था कि पल्लीवाल कहाने वाला तो पाली में फिर न बसेगा । इस प्रतिज्ञा के विरोध में अभी पाली में इनके घर बसते हैं। इसका कारण यह है कि जब वैश्य और ब्राह्मण दोनों पल्लीवाल ज्ञातियों ने पाली का त्याग सदा के लिये कर दिया तो यह संभव है और सहज समझ में आने जैसी वस्तु है कि इन प्रभाव-शाली दो ज्ञातियों के संग संग इन पर निर्वाह करने वाली इनसे संबंधित ज्ञातियां और कुलों ने भी अवश्य पाली का त्याग किया होगा । उसी समय से जहां जहां ये दोनों ज्ञातियां पाली त्याग कर गई, बसी, वहाँ वहाँ लोहार, सुनार खाती आदि कई ज्ञातियाँ बसी और वे भी पालीवाल लोहार, पालीवाल सुनार इस प्रकार ही कही जाती हैं' ___ पाली से जैसलमेर, वोकानेर और उदयपुर के राज्य कुछ ही मन्तर पर आ गये है फलतः इन तीनों राज्यों में पालीवाल ब्राह्मण पधिकतर बसे हुए हैं। उदयपुर राज्य में नाथद्वारा और इसके आस-पास के प्रदेश में पालीवाल ब्राह्मण अच्छी संख्या में बसे हुए हैं। तात्पर्य यह है कि इन्होंने, वैश्यों ने और कुछ अन्य शातियों ने जब पाली का त्याग कर दिया और पुनः लौट कर कोई पाली की ओर मुड़ा तक नहीं, तो पाली की समृद्धता एक दम लुप्त हो गई । पाली नगर सून--सान सा हो गया । पाली के कारण जो मारवाड़ और राजस्थान का व्यापार तिव्वत अरब, अफ्रीका, यूरोप तक फैला हुआ था उसको एक भारी धक्का लगा। हो सकता है जोधपुर के नरेश ने इस धक्के का
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