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श्रेष्ठि वीरदेव देवकुमार और हालू इन तीनों भ्रातानों ने अपने और अपनी माता जाल्हणदेवी के कल्याणार्थ श्री महावीरस्वामी की प्रतिमा वनवाई | ४
श्रेष्ठ सहदेव ने देवकुलिका संख्या ३८ दण्ड ध्वज - कलशादि सहित विनिर्मित करवा कर उपरोक्त तीनों प्रतिमायें उसमें संस्थापित करवाई | और भगवान संभवनाथ के पांचों कल्यारों का लेखपट्ट तैयार करवा कर लगवाया । ५
श्रेष्ठि धनेश्वर और लाहड़ ने अपने, अपनी माता नायकी और अपनी स्त्रियों के कल्याणार्थ श्री अभिनंदन प्रतिमा बनवाई | ६ श्रेष्ठ लाहड़ ने अपनी स्त्री लक्ष्मी के श्रेयार्थ श्री नेमिनाथ बिंब बनवाया । ७
जिनचन्द्र, धनेश्वर और लाहड़ इन तीनों ने अपनी माता वधू हरियाही (हर्षिरणी) के श्रेयार्थ देदकुलिका दण्डकलशादियुतों संख्या ३६ विनिर्मित करवा कर उसमें सपरिकर प्रतिमायें उक्त अभिनंदन, नेमिनाथ और शान्तिनाथ भगवान की संस्थापित कीं । भगवान अभिनंदन स्वामी के पांचों कल्याणकों का लेखपट्ट उत्कीरिंगत करवा कर लगवाया । ८
( ४ ) प्र० प्रा० जै० लेखसंदोह लेखाङ्क
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