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तपागच्छीय श्रीमद विद्यानन्दसूरि
एवं श्री धर्मघोषसूरि इसके पूर्व पृष्ठों में ही हम पल्लीवाल ज्ञातीय प्रसिद्ध नेमड़ और उसके वंशजों का यथाप्राप्त वर्णन कर चुके हैं । श्रेष्ठि नेमड़ के पुत्र राहड़ के पुत्र के पुत्र जिनचन्द्र की चाहिणी नामा धर्म परायणा सुशीला स्त्री से एक कन्या एवं पांच पुत्र हुए थे। चौथा
और पांचवां पुत्र वीरधवल और भीमदेव थे । नेमड़ का समस्त परिवार दृढ़ जैनधर्मी, धर्म कर्म परायण, गुरुभक्त एवं संस्कार पवित्र था । यह नेमड़ के इतिहास से सिद्ध हो जाता है। ___ ऐसे जिन शासन सेवक नेमड़ के कुल में इन दो-वीरधवल
और भीमदेव ने संसार की असारता का विचार करके भव सुधारनेकी शुभ भावनाओं केउदय से आकर्षित होकर तपागच्छीय देवभद्रसूरि, विजय चन्द्रसूरि और देवेन्द्रसूरि की आम्नाय में वि० सं० १३०२ में उज्जैन नामक प्रसिद्ध एवं ऐतिहासिक नगरी में भागवती दीक्षा ग्रहण की और श्री वीर धवल मुनि विद्यानन्द
और श्री भीमदेव धर्मकीति नाम से क्रमशः विश्रुत हुए । ___ विद्यानन्दसूरि-दोनों भ्राताओं ने गुरु सेवा में रह कर कठिन संयम साध कर उत्तम चारित्र प्राप्त किया एवं शास्त्राभ्यास करके प्रशंसनीय विद्वत्ता प्राप्त की । विद्यानन्दसूरि ने 'विद्यानन्द' नामक
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