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कर्मानुरक्ता थी । उसके वास्तू नाम की एक कन्या थी। पद्मसिंह को कन्या कर्पूरी ने और वास्तू ने गणिनी श्रीकीति श्री के पास में साध्वी-दीक्षा ग्रहण की और क्रमशः भावसुन्दरी, मदन सुन्दरी साध्वी नाम से प्रसिद्ध हुई।
धर्मात्मा, मोहबिगत, परोपकार परायण,गुरूभक्त श्रेष्ठि श्रीपाल ने कुलप्रभगुरू के उपदेश को श्रवण करके स्वमाता-पिता के 'श्रेयार्थ अजितनाथादि चरित्र' पुस्तक को वि० सं० १३०३ कार्तिक शुक्ला १० रविवार को श्री भृगुकच्छ में ही ठा० समुधर से लिखवाया।
श्रेष्ठि श्रीपाल का वंशवृक्ष
सोही (सुहवादेवी) पासणाग (पऊश्री)
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साजण (सहजमती) राणक
आहड़ (चांदू) पनी
जसल
रतनधा मोहण साल्हण आशा श्रीपाल धांधक पद्मसिंह ललतू
(आशादेवी) (वील्हका) [रुक्मिणी] [लक्ष्मी] |
वास्तू
• जैत्रसिंह वील्हा |
रल जै० पु०प्र० सं० प्र० ११. पृ० १४.
कर्पूरी
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