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३-कायस्थिति, ४ भवस्थितिस्तवन ५-चतुर्विंशति पर जिनस्तव २४. ६-शास्ताशर्मेति नाम का आदि स्तोत्र ७-देवेन्द्ररनिशम् नाम का श्लेषस्तोत्र ८-युयंयुवा इति श्लेसस्तुतयः E-जयऋषभेति आदि स्तुत्यादयः इस प्रकार साहित्य एवं धर्म की प्रभावना, प्रसिद्धि करते हुए आपका स्वर्गवास वि० सं० १३५७ में हुआ । प्राचीन जैनाचार्यों में विद्वत्ता एवं धर्म-प्रचार-प्रसार की दृष्टियों से आपका स्थान बहुत ऊंचा है।
यति परम्परा पल्लीवालों के मन्दिरों में विद्वान यतियों की परम्परा भी हुई जो अधिकतर विजयगच्छ में से हुई। उन में से कुछ यतियों की नामावलि इस प्रकार है :
श्री मुलतानचन्द्र जी महाराज-वसुधा में श्री मूलचन्द्र जी महाराज- सांते में श्री रामचन्द्र जी महाराज - करौली में श्री मेवाराम जी महाराज - अलवर में श्री गोविन्दचंद्र जी ,, - हिंडौन में श्री घनश्यामदासजी ,, - आगरा (धूलियागंज मोहल्ले में) श्री मुरलीधर जी ,, - वैर में श्री मुरलीधर जी " - मिढ़ाकुर में कठयारी में इन्ही का
अधिकार था
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